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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 7

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 7/ मन्त्र 2
    सूक्त - सुकक्षः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७

    नव॒ यो न॑व॒तिं पुरो॑ बि॒भेद॑ बा॒ह्वोजसा। अहिं॑ च वृत्र॒हाव॑धीत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नव॑ । य: । न॒व॒तिम् । पुर॑: । बि॒भेद॑ । बा॒हुऽओ॑जसा । अह‍ि॑म् । च॒ । वृ॒त्र॒ऽहा । अ॒व॒धी॒त् ॥७.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नव यो नवतिं पुरो बिभेद बाह्वोजसा। अहिं च वृत्रहावधीत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नव । य: । नवतिम् । पुर: । बिभेद । बाहुऽओजसा । अह‍िम् । च । वृत्रऽहा । अवधीत् ॥७.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 7; मन्त्र » 2

    भाषार्थ -
    (यः) जिस सूर्यों के सूर्य ने (बाह्वोजसा) निज ओजरूपी बाहुओं द्वारा (नवतिं नव) ९९ (पुरः) पाप-गढ़ों को (बिभेद) छिन्न-भिन्न कर दिया है, उसी परमेश्वर ने, (वृत्रहा) जो कि पापों का विनाशक है, (अहिं च) पाप-सांपों का भी (अवधीत्) वध कर दिया है।

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