अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 15/ मन्त्र 7
उप॑ त्वा॒ नम॑सा व॒यं होत॑र्वैश्वानर स्तु॒मः। स नः॑ प्र॒जास्वा॒त्मसु॒ गोषु॑ प्रा॒णेषु॑ जागृहि ॥
स्वर सहित पद पाठउप॑ । त्वा॒ । नम॑सा । व॒यम् । होत॑: । वै॒श्वा॒न॒र । स्तु॒म: । स: । न॒: । प्र॒ऽजासु॑ । आ॒त्मऽसु॑ । गोषु॑ । प्रा॒णेषु॑ । जा॒गृ॒हि॒ ॥१५.७॥
स्वर रहित मन्त्र
उप त्वा नमसा वयं होतर्वैश्वानर स्तुमः। स नः प्रजास्वात्मसु गोषु प्राणेषु जागृहि ॥
स्वर रहित पद पाठउप । त्वा । नमसा । वयम् । होत: । वैश्वानर । स्तुम: । स: । न: । प्रऽजासु । आत्मऽसु । गोषु । प्राणेषु । जागृहि ॥१५.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 15; मन्त्र » 7
भाषार्थ -
(वैश्वानर) हे सब नर नारियों के हितकारी, (होत:)१ तथा सबके दाता परमेश्वर!] (वयम्) हम (नमसा) नमस्कारपूर्वक (त्वा उप) तेरे समीप हुए (स्तुमः) तेरी स्तुति करते हैं। (सः) वह तू (न:) हमारी (प्रजासु) पुत्रादि प्रजाओं में, (आत्मसु) हमारी आत्माओं में, (गोषु) हमारी इन्द्रियों में, (प्राणेषु) हमारे प्राणों में (जागृहि) जागरित रह।
टिप्पणी -
[राष्ट्र का प्रत्येक प्रजाजन परमेश्वर से प्रार्थना करता है कि तू हमारी प्रजा आदि की रक्षा के लिए, उनमें व्याप्त हुआ, सदा जागरित रहे, हम सब नमस्कारों द्वारा तेरी स्तुति करते हैं । वैश्वानर=विश्वनरहित (सायण)। वैदिक धर्म अनुसार राष्ट्र का प्रत्येक जन परमेश्वर की उपासना तथा स्तुति किया करे, इसका विधान मन्त्र में हुआ है। वैदिक राष्ट्र secular अर्थात् धर्मनिरपेक्ष नहीं, अपितु धर्मभावनाओंवाला है।] [ १. हु दानादनयोः (जुहोत्यादि)।]