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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 10/ मन्त्र 2
सूक्त - शन्ताति
देवता - वायुः
छन्दः - प्राजापत्या बृहती
सूक्तम् - संप्रोक्षण सूक्त
प्रा॒णाया॒न्तरि॑क्षाय॒ वयो॑भ्यो वा॒यवेऽधि॑पतये॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठप्रा॒णाय॑ । अ॒न्तरि॑क्षाय । वय॑:ऽभ्य: । वा॒यवे॑ । अधि॑ऽपतये । स्वाहा॑ ॥१०.२॥
स्वर रहित मन्त्र
प्राणायान्तरिक्षाय वयोभ्यो वायवेऽधिपतये स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठप्राणाय । अन्तरिक्षाय । वय:ऽभ्य: । वायवे । अधिऽपतये । स्वाहा ॥१०.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 10; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
"अन्तरिक्ष के लिये, श्वासोच्छ्वासरूप प्राणसम्बन्धी नासिका के लिये पक्षियों के लिये, अधिपति वायु के लिये स्वाहा हो [हविः की आहुतियां हों]।"
टिप्पणी -
[व्याख्या मन्त्र १ वत् । अन्तरिक्ष के साथ नासिका, पक्षियों, अधिपति वायु का सम्बन्ध है]।