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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 52

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 52/ मन्त्र 2
    सूक्त - भागलि देवता - गावः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - भैषज्य सूक्त

    नि गावो॑ गो॒ष्ठे अ॑सद॒न्नि मृ॒गासो॑ अविक्षत। न्यू॒र्मयो॑ न॒दीनं॒ न्यदृष्टा॑ अलिप्सत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नि । गाव॑: । गो॒ऽस्थे । अ॒स॒द॒न् । नि । मृ॒गास॑: । अ॒वि॒क्ष॒त॒ । नि । ऊ॒र्मय॑: । न॒दीना॑म् । नि । अ॒दृष्टा॑: । अ॒लि॒प्स॒त॒ ॥५२.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नि गावो गोष्ठे असदन्नि मृगासो अविक्षत। न्यूर्मयो नदीनं न्यदृष्टा अलिप्सत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नि । गाव: । गोऽस्थे । असदन् । नि । मृगास: । अविक्षत । नि । ऊर्मय: । नदीनाम् । नि । अदृष्टा: । अलिप्सत ॥५२.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 52; मन्त्र » 2

    भाषार्थ -
    (गावः) सूर्य की रश्मियां (गोष्ठे) रश्मियों के स्थान सूर्य में (नि असदन्) नितरां स्थित हो गई हैं, (मृगासः) स्थान का अन्वेषण करने वाली रश्मियों ने (नि) नितरां (अविक्षत) निज स्थान में प्रवेश पा लिया है। (नदीनाम्) स्तुति करने वाली प्रजाओं की (ऊर्मयः) प्रात: कालीन स्तुति तरङ्गों ने (नि) नितरां (अलिप्सत१) प्रापणीय परमेश्वर को प्राप्त करना चाहा है, (अदृष्टाः) तथा अदृष्ट अर्थात् भावाकाल में होने वाली प्रातः कालीन स्तुति तरङ्गे भी परमेश्वर को स्तुति काल में पाती रहेंगी।

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