Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 7/ मन्त्र 1
सूक्त - अथर्वा
देवता - सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
सूक्तम् - असुरक्षयण सूक्त
येन॑ सो॒मादि॑तिः प॒था मि॒त्रा वा॒ यन्त्य॒द्रुहः॑। तेना॒ नोऽव॒सा ग॑हि ॥
स्वर सहित पद पाठयेन॑ । सो॒म॒ । अदि॑ति: । प॒था । मि॒त्रा: । वा॒ । यन्ति॑ । अ॒द्रुह॑: । तेन॑ । न॒: । अव॑सा । आ । ग॒हि॒ ॥७.१॥
स्वर रहित मन्त्र
येन सोमादितिः पथा मित्रा वा यन्त्यद्रुहः। तेना नोऽवसा गहि ॥
स्वर रहित पद पाठयेन । सोम । अदिति: । पथा । मित्रा: । वा । यन्ति । अद्रुह: । तेन । न: । अवसा । आ । गहि ॥७.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(सोम) हे सेनाध्यक्ष ! (येन यथा) जिस मार्ग से (अदितिः) माता (वा) या (अद्रुहः) पारस्परिक द्रोहरहित ( मित्राः) मित्र (यन्ति) चलते हैं, (तेन अवसा) उस पारस्परिक रक्षा करने वाले मार्ग द्वारा (नः) हमारी ओर (आ गहि) आ।
टिप्पणी -
[अदिति= पृथिवी, वाक्, गौः (निघं० १।९; १।११; २।११)। वेद की दृष्टि में ये तीनों माताएं हैं, पृथिवी माता (अथर्व० १२।१०;१२)। वाक् अर्थात् वेदमाता (अथर्व० १९।७१।१)। गौः तो माता प्रसिद्ध ही है। इस प्रकार अदिति द्वारा इन तीनों का भी ग्रहण हो सके इसलिये अदिति का अर्थ "अदीना देवमाता" (निरुक्त ४।४।१३) न होकर संकुचितार्थ ही, अर्थात् मन्त्र में केवल "माता" अर्थ ही ग्रहण करना चाहिये। इस से "मानुषी माता" अर्थ भी मन्त्र में "अदिति" का किया जा सकता है। "मानुषी माता" स्नेह की सुचिता है, अपनी सब सन्तानों के प्रति। इसी प्रकार "अद्रोही मित्र" भी पारस्परिक स्नेह के सूचक हैं। ये दो दृष्टान्त देकर सेनाध्यक्ष के प्रति कहा है कि तू भी स्नेहमय-रक्षामार्ग द्वारा हम प्रजाजनों की ओर आ, [हमारे शासक रूप में आ]।