Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 83/ मन्त्र 2
सूक्त - अङ्गिरा
देवता - सूर्यः, चन्द्रः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - भैषज्य सूक्त
एन्येका॒ श्येन्येका॑ कृ॒ष्णैका॒ रोहि॑णी॒ द्वे। सर्वा॑सा॒मग्र॑भं॒ नामावी॑रघ्नी॒रपे॑तन ॥
स्वर सहित पद पाठएनी॑ । एका॑ । श्येनी॑ । एका॑ । कृ॒ष्णा । एका॑ । रोहि॑णी॒ इति॑ ।द्वे इति॑ । सर्वा॑साम् । अ॒ग्र॒भ॒म् । नाम॑ । अवी॑रऽघ्नी: । अप॑ । इ॒त॒न॒ ॥८३.२॥
स्वर रहित मन्त्र
एन्येका श्येन्येका कृष्णैका रोहिणी द्वे। सर्वासामग्रभं नामावीरघ्नीरपेतन ॥
स्वर रहित पद पाठएनी । एका । श्येनी । एका । कृष्णा । एका । रोहिणी इति ।द्वे इति । सर्वासाम् । अग्रभम् । नाम । अवीरऽघ्नी: । अप । इतन ॥८३.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 83; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(एनी) ईषद्रक्तमिश्रित श्वेतरक्तवाली [सायण] गण्डमाला (एका) एक प्रकार की होती है, (श्येनी) अत्यन्त शुभ्रवर्णवाली गण्डमाला (एका) एक प्रकार की होती है, (कृष्णा) काली गण्डमाला (एका) एक प्रकार की होती है, (रोहिणी) लाल गण्डमालाएं (द्वे) दो प्रकार की होती हैं। (सर्वासाम्) उन सब गण्डमालाओं के (नाम) नाम (अग्रभम्) मैंने कथित कर दिये हैं, (अवीरघ्नीः) हे अवीरों अर्थात् निर्बलों की हत्या करनेवाली गण्डमालाओ ! (अपेतन) तुम अपगत हो जाओ, हट जाओ।
टिप्पणी -
[गण्डमाला क्षय रोग है जो कि निर्बलों का हनन करती है। अतः पौष्टिक अन्न और औषधों के सेवन करने का विधान हुआ है]।