Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 72/ मन्त्र 3
श्रा॒तं म॑न्य॒ ऊध॑नि श्रा॒तम॒ग्नौ सुशृ॑तं मन्ये॒ तदृ॒तं नवी॑यः। माध्य॑न्दिनस्य॒ सव॑नस्य द॒ध्नः पिबे॑न्द्र वज्रिन्पुरु॒कृज्जु॑षा॒णः ॥
स्वर सहित पद पाठश्रा॒तम् । म॒न्ये॒ । ऊध॑नि । श्रा॒तम् । अ॒ग्नौ । सुऽशृ॑तम् । म॒न्ये॒ । तत् । ऋ॒तम्। नवी॑य: । माध्यं॑दिनस्य । सव॑नस्य । द॒ध्न: । पिब॑ । इ॒न्द्र॒ । व॒ज्रि॒न् । पु॒रु॒ऽकृत् । जु॒षा॒ण: ॥७६.१॥
स्वर रहित मन्त्र
श्रातं मन्य ऊधनि श्रातमग्नौ सुशृतं मन्ये तदृतं नवीयः। माध्यन्दिनस्य सवनस्य दध्नः पिबेन्द्र वज्रिन्पुरुकृज्जुषाणः ॥
स्वर रहित पद पाठश्रातम् । मन्ये । ऊधनि । श्रातम् । अग्नौ । सुऽशृतम् । मन्ये । तत् । ऋतम्। नवीय: । माध्यंदिनस्य । सवनस्य । दध्न: । पिब । इन्द्र । वज्रिन् । पुरुऽकृत् । जुषाण: ॥७६.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 72; मन्त्र » 3
भाषार्थ -
(ऊधनि) गौ के ऊधस् में वर्तमान दुग्ध को (श्रातम्) पका हुमा (मन्ये) मैं मानता हूं (अग्नौ) अग्नि में (श्रातम्) पके पदार्थ को भी पका हुआ मानता हूं, (तत्) उस (ऋतम्) सत्य को (सुशृतम्) उत्तम पका हुआ (मन्ये) मैं मानता हूं जो कि (नवीयः१) अन्य पक्वों की अपेक्षा सदा नवीन नवतर रहता है। (पुरुकृत) हे नानाविध कर्मों के करने वाले (वज्रिन् इन्द्र) सम्राट् ! तू (जुषाणः) प्रीतिपूर्वक (माध्यन्दिनस्य) मध्याह्नकाल के (सवनस्य) दोहे गए दूध सम्बन्धी (दध्नः) दधि मट्ठे को (पिब) पीया कर।
टिप्पणी -
[मन्त्र में पक्व पदार्थों की तीन जातियाँ कही है (१) ऊधस् पक्व दूध; (२) अग्निपक्व दाल-भात आदि तथा सौराग्नि पक्व फलादि (३) सत्यज्ञान। तीसरा पक्व सदा नवीन रहता है। यह कभी पुराना नहीं होता। पेय पदार्थों में माध्यन्दिन में दोहे गए दूध की दधि से मथे गए मट्ठे का पान श्रेष्ठ माना है। सूक्त ७५ में सम्राट् के भोजन का वर्णन हुआ है, और सूक्त ७६ में माध्यन्दिन में भोजन के साथ मट्ठे के पान का भी विधान हुआ है।] [१. "सत्यज्ञान" तीनों कालों में एकरूप रहता है, अतः वह सदा नवीन है, कभी पुराना नहीं होता।]]