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अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 80/ मन्त्र 1
सूक्त - अथर्वा
देवता - पौर्णमासी
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - पूर्णिमा सूक्त
पू॒र्णा प॒श्चादु॒त पू॒र्णा पु॒रस्ता॒दुन्म॑ध्यतः पौ॑र्णमा॒सी जि॑गाय। तस्यां॑ दे॒वैः सं॒वस॑न्तो महि॒त्वा नाक॑स्य पृ॒ष्ठे समि॒षा म॑देम ॥
स्वर सहित पद पाठपू॒र्णा । प॒श्चात् । उ॒त । पू॒र्णा । पु॒रस्ता॑त् । उत् । म॒ध्य॒त: । पौ॒र्ण॒ऽमा॒सी । जि॒गा॒य॒ । तस्या॑म् । दे॒वै: । स॒म्ऽवस॑न्त: । म॒हि॒ऽत्वा । नाक॑स्य । पृ॒ष्ठे । सम् । इ॒षा । म॒दे॒म॒ ॥८५.१॥
स्वर रहित मन्त्र
पूर्णा पश्चादुत पूर्णा पुरस्तादुन्मध्यतः पौर्णमासी जिगाय। तस्यां देवैः संवसन्तो महित्वा नाकस्य पृष्ठे समिषा मदेम ॥
स्वर रहित पद पाठपूर्णा । पश्चात् । उत । पूर्णा । पुरस्तात् । उत् । मध्यत: । पौर्णऽमासी । जिगाय । तस्याम् । देवै: । सम्ऽवसन्त: । महिऽत्वा । नाकस्य । पृष्ठे । सम् । इषा । मदेम ॥८५.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 80; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(पौर्णमासी) पौर्णमासी के सदृश (पश्चात्) पश्चिम में (पूर्णा) पूर्णप्रकाश वाली, (पुरस्तात्, उत मध्यतः) पूर्व तथा दोनों दिशाओं के मध्य१ में (पूर्णा) पूर्ण प्रकाश वाली पारमेश्वरीमाता (उत् जिगाय= उज्जिगाय) सर्वोत्कर्षेण विद्यमान है (महित्वा) तथा प्राप्त महिमा के कारण (तस्याम्) उस पारमेश्वरी माता में (देवेः) अन्य देवों के साथ (संवसन्तः) मिल कर वास करते हुए (नाकस्य पृष्ठे) दुःख से रहित नाकलोक की पीठ पर (इषा) आनन्दरसरूपी अन्न द्वारा (सम् मदेम) हम सुमुदित हों।
टिप्पणी -
[मन्त्र में पौर्णमासी के दृष्टान्त द्वारा पारमेश्वरी माता के सर्वत्र पूर्ण प्रकाश का द्योतन किया है। पारमेश्वरीमाता के प्रकाश को प्राप्त करने से महिमायुक्त हुए योगी जन, नाक की पीठ पर मोक्षावस्था में अन्य मुक्तात्मा-देवों के साथ मिल कर आनन्दरस के पान द्वारा संमुदित रहते हैं। पौर्णमासी के प्रकाश को प्राप्त कर मोक्षावस्था का आनन्दरस अलभ्य है। अतः पौर्णमासी के दृष्टान्त द्वारा पारमेश्वरीमाता के पूर्ण प्रकाश का ही वर्णन मन्त्र में अभिप्रेत है।] [१. अभिप्राय यह कि पौर्णमासी का चन्द्रमा जब पूर्व में उदित होता, तो पूर्ण कलाओं से ही युक्त होता है, और जब पश्चिम में प्राप्त होता है तब भी पूर्ण कलाओं से ही युक्त होता है तथा पूर्व और पश्चिम के मध्याकाश में गति करता हुआ भी पूर्ण कलाओं से ही युक्त रहता है। परन्तु पौर्णमासी के उत्तरकाल से उसकी कलाओं मैं ह्रास होने लगता है। परन्तु परमेश्वर का प्रकाश पौर्णमासी के प्रकाश की तरह सदा एक सा रहता है, उसके प्रकाश में ह्रास नहीं होतक०]