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अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 83/ मन्त्र 2
सूक्त - शुनःशेपः
देवता - वरुणः
छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - पाशमोचन सूक्त
धाम्नो॑धाम्नो राजन्नि॒तो व॑रुण मुञ्च नः। यदापो॑ अ॒घ्न्या इति॒ वरु॒णेति॒ यदू॑चि॒म ततो॑ वरुण मुञ्च नः ॥
स्वर सहित पद पाठधाम्न॑:ऽधाम्न: । रा॒ज॒न् । इ॒त: । व॒रु॒ण॒ । मु॒ञ्च॒ । न॒: । यत् । आप॑: । अ॒घ्न्या: । इति॑ । वरु॑ण । इति॑ । यत् । ऊ॒चि॒म । तत॑: । व॒रु॒ण॒ । मु॒ञ्च॒ । न॒: ॥८८.२॥
स्वर रहित मन्त्र
धाम्नोधाम्नो राजन्नितो वरुण मुञ्च नः। यदापो अघ्न्या इति वरुणेति यदूचिम ततो वरुण मुञ्च नः ॥
स्वर रहित पद पाठधाम्न:ऽधाम्न: । राजन् । इत: । वरुण । मुञ्च । न: । यत् । आप: । अघ्न्या: । इति । वरुण । इति । यत् । ऊचिम । तत: । वरुण । मुञ्च । न: ॥८८.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 83; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(वरुण, राजन्) हे वरणीय राजा! (इतः) इस (धाम्नः, धाम्नः१) प्रत्येक स्थान से (नः) हमारे पाशों को (मुञ्च) खोल दे। (यद्) जो (आपः अघ्न्याः इति) व्यापक अनश्वर हे परमेश्वर ! इस प्रकार और (यद) जो (वरुण इति) हे वरणीय परमेश्वर ! इस प्रकार (ऊचिम) हमने तुझे पुकार है, (ततः) उस कारण (वरुण) हे वरणीय परमेश्वर ! (नः) हमारे पाशों को (मुञ्च) खोल दे।
टिप्पणी -
[परमेश्वर तो पाशों के मोचन का व्रत धारण किये हुआ है, परन्तु व्यक्ति पाशों से मुक्त नहीं हुए, अतः वे परमेश्वर का आह्वान करके उसे पुकार कर कहते हैं कि हमारे पाशों को खोल दें। मन्त्र में दो "इति द्वारा दो सम्बोधन प्रतीत होते हैं, (१) "आपः अघ्न्याः" (२) वरुण। तीन नहीं। "आपः, अघ्न्याः" पद विशेष्य-विशेषण रूप है। "आपः" हे व्यापक परमेश्वर आप्लृ व्याप्तौ; तथा "ताः आपः स प्रजापतिः" (यजु० ३२।२)। अघ्न्यः = न हन्तव्याः, अनश्वर परमेश्वर। पाण्डुलिपियों में "दाम्नः दाम्तः" भी पाठ है। जिसका अर्थ है प्रत्येक दाम से, रस्सी से पाश से।] [१. दाम्नोदाम्नः (पाठान्तर)।]