Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 83/ मन्त्र 1
अ॒प्सु ते॑ राजन्वरुण गृ॒हो हि॑र॒ण्ययो॑ मि॒थः। ततो॑ धृ॒तव्र॑तो॒ राजा॒ सर्वा॒ धामा॑नि मुञ्चतु ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒प्ऽसु । ते॒ । रा॒ज॒न् । व॒रु॒ण॒ । गृ॒ह: । हि॒र॒ण्यय॑: । मि॒थ: । तत॑: । धृ॒तऽव्र॑त: । राजा॑ । सर्वा॑ । धामा॑नि । मु॒ञ्च॒तु॒ ॥८८.१॥
स्वर रहित मन्त्र
अप्सु ते राजन्वरुण गृहो हिरण्ययो मिथः। ततो धृतव्रतो राजा सर्वा धामानि मुञ्चतु ॥
स्वर रहित पद पाठअप्ऽसु । ते । राजन् । वरुण । गृह: । हिरण्यय: । मिथ: । तत: । धृतऽव्रत: । राजा । सर्वा । धामानि । मुञ्चतु ॥८८.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 83; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(वरुण) हे वरणीय (राजन) ब्रह्माण्ड के राजा ! (अप्सु) जलों में (ते) तेरा (हिरण्ययः) हिरण्यमय (गृहः) घर है (मिथः) जो कि हम दोनों के निवास के लिये है। (धृतव्रतः राजा) व्रतधारी वह वरुण राजा (ततः) उस गृह से (सर्वा धामानि) सब धामों में आश्रित पाशों को (मुञ्चतु) मुक्त कर दे, खोल दे।
टिप्पणी -
[आपः हैं हृदयस्थ रक्त (अथर्व० १०।२।११)। हिरण्ययः = (अथर्व० १०।२।३१-३३)। मिथः= जीवात्मा और वरुण का सहवास का स्थान। (धामानि= स्थानानि)। यथा "धामानि त्रयाणि भवन्ति, नामानि, स्थानानि जन्मानि" (निरुक्त ९।२८)। पाशों के स्थान तीन हैं, (१) उत्तमपाश का स्थान, (२) अधमपाश का स्थान, (३) मध्यमपाश का स्थान (मन्त्र ३।४ धतव्रतः= वरुण का व्रत है पाशों को खोल देना, व्यक्ति को पाशों से उन्मुक्त कर देना। कई पाण्डुलिपियों में "धामानि" के स्थान में "दामानि" पाठ है। दाम= रस्सी, पाश। यह पाठ उत्तम है]।