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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 29

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 29/ मन्त्र 1
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - दर्भमणिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दर्भमणि सूक्त

    निक्ष॑ दर्भ स॒पत्ना॑न्मे॒ निक्ष॑ मे पृतनाय॒तः। निक्ष॑ मे॒ सर्वा॑न्दु॒र्हार्दो॒ निक्ष॑ मे द्विष॒तो म॑णे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    निक्ष॑। द॒र्भ॒। स॒ऽपत्ना॑न्। मे॒। निक्ष॑। मे॒। पृ॒त॒ना॒ऽय॒तः। निक्ष॑। मे॒। सर्वा॑न्। दुः॒ऽहार्दः॑। निक्ष॑। मे॒। द्वि॒ष॒तः। म॒णे॒ ॥२९.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    निक्ष दर्भ सपत्नान्मे निक्ष मे पृतनायतः। निक्ष मे सर्वान्दुर्हार्दो निक्ष मे द्विषतो मणे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    निक्ष। दर्भ। सऽपत्नान्। मे। निक्ष। मे। पृतनाऽयतः। निक्ष। मे। सर्वान्। दुःऽहार्दः। निक्ष। मे। द्विषतः। मणे ॥२९.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 29; मन्त्र » 1

    Translation -
    O darbha-mani, sting my adversaries like a serpent. Sting those who come with armies to battle with me. Sting all those who wish me ill, as well as those who hate me.

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