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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 29

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 29/ मन्त्र 3
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - दर्भमणिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दर्भमणि सूक्त

    रु॒न्द्धि द॑र्भ स॒पत्ना॑न्मे रु॒न्द्धि मे॑ पृतनाय॒तः। रु॒न्द्धि मे॒ सर्वा॑न्दु॒र्हार्दो॑ रु॒न्द्धि मे॑ द्विष॒तो म॑णे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रु॒न्द्धि। द॒र्भ॒। स॒ऽपत्ना॑न्। मे॒। रु॒न्द्धि। मे॒। पृ॒त॒ना॒ऽय॒तः। रु॒न्द्धि। मे॒। सर्वा॑न्। दुः॒ऽहार्दः॑। रु॒न्द्धि। मे॒। द्वि॒ष॒तः। म॒णे॒ ॥२९.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रुन्द्धि दर्भ सपत्नान्मे रुन्द्धि मे पृतनायतः। रुन्द्धि मे सर्वान्दुर्हार्दो रुन्द्धि मे द्विषतो मणे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    रुन्द्धि। दर्भ। सऽपत्नान्। मे। रुन्द्धि। मे। पृतनाऽयतः। रुन्द्धि। मे। सर्वान्। दुःऽहार्दः। रुन्द्धि। मे। द्विषतः। मणे ॥२९.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 29; मन्त्र » 3

    Translation -
    Let the darbha-mani obstruct my rivals as well those who intend to fight with me. Let it obstruct all the wicked-hearted people and those who are full of hatred for me.

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