Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 4

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 4/ मन्त्र 2
    सूक्त - आदित्य देवता - साम्नी उष्णिक् छन्दः - ब्रह्मा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    स्वा॒सद॑सि सू॒षाअ॒मृतो॒ मर्त्ये॒श्वा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒ऽआ॒सत् । अ॒सि॒ । सु॒ऽउ॒षा : । अ॒मृत॑: । मर्त्ये॑षु । आ ॥४.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वासदसि सूषाअमृतो मर्त्येश्वा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुऽआसत् । असि । सुऽउषा : । अमृत: । मर्त्येषु । आ ॥४.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 4; मन्त्र » 2

    शब्दार्थ -
    मैं (सुभगाम्) उत्तम सौभाग्यदात्री (देवीम्) दिव्यगुणो से युक्त (आकृतिम् ) संकल्प-शक्ति को (पुरः दधे) सम्मुख रखता हूँ (चित्तस्य माता) चित्त की निर्मात्री वह संकल्प-शक्ति (न:) हमारे लिए (सुहवा) सुगमता से बुलाने योग्य (अस्तु) हो । (याम्) जिस (आशाम्) कामना को (एमि) करूँ (सा) वह कामना (केवली) पूर्णरूप से (मे अस्तु) मुझे प्राप्त हो । (मनसि) मन में (प्रविष्टाम्) प्रविष्ट हुई (एनान्) इस संकल्प-शक्ति को (विदेयम्) मैं प्राप्त करूँ ।

    भावार्थ - १. किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए संकल्प-शक्ति को सबसे आगे रखना चाहिए । बिना संकल्प के सिद्धि असम्भव है । २. संकल्प-शक्ति दिव्य गुणोंवाली है। इसके द्वारा हम आश्चर्यजनक कार्यों को कर सकते हैं । ३. संकल्प-शक्ति ऐश्वर्य, श्री और यशरूप भग को देनेवाली है । ४. संकल्प-शक्ति चित्त का निर्माण करनेवाली है। चित्त की कार्यक्षमता और कुशलता संकल्प-शक्ति पर ही निर्भर है । ५. संकल्प-शक्ति हमारे लिए सहज में ही बुलाने योग्य हो अर्थात् सर्वदा हमारे वश में हो। ६. संकल्प-शक्ति से प्रत्येक कामना पूर्णरूप से सिद्ध हो जाती है । ७. मन में प्रविष्ट हुई इस संकल्प-शक्ति को प्रत्येक व्यक्ति को प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए ।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top