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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 167 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 167/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः देवता - इन्द्रो मरुच्च छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    आस्था॑पयन्त युव॒तिं युवा॑नः शु॒भे निमि॑श्लां वि॒दथे॑षु प॒ज्राम्। अ॒र्को यद्वो॑ मरुतो ह॒विष्मा॒न्गाय॑द्गा॒थं सु॒तसो॑मो दुव॒स्यन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । अ॒स्था॒प॒य॒न्त॒ । यु॒व॒तिम् । युवा॑नः । शु॒भे । निऽमि॑श्लाम् । वि॒दथे॑षु । प॒ज्राम् । अ॒र्कः । यत् । वः॒ । म॒रु॒तः॒ । ह॒विष्मा॑न् । गाय॑त् । गा॒थम् । सु॒तऽसो॑मः । दु॒व॒स्यन् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आस्थापयन्त युवतिं युवानः शुभे निमिश्लां विदथेषु पज्राम्। अर्को यद्वो मरुतो हविष्मान्गायद्गाथं सुतसोमो दुवस्यन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। अस्थापयन्त। युवतिम्। युवानः। शुभे। निऽमिश्लाम्। विदथेषु। पज्राम्। अर्कः। यत्। वः। मरुतः। हविष्मान्। गायत्। गाथम्। सुतऽसोमः। दुवस्यन् ॥ १.१६७.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 167; मन्त्र » 6
    अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 5; मन्त्र » 1

    शब्दार्थ -
    (मरुतः) हे सैनिको ! (विदथेषु) यज्ञोत्सवों में (सुतसोम:) आपके सत्कारार्थ उत्तम पदार्थों को लिये हुए (दुवस्यन्) आपकी परिचर्या करता हुआ (हविष्मान्) नाना प्रकार की सम्पदाओं से युक्त (अर्कः) आपकी पूजा के लिए उत्सुक गृहपति (यद्वो गाथम्) जो आपकी गाथा (गायत्) गाता है वह यह है कि तुम (युवानः) उच्छृङ्खल चेष्टाओं से युक्त युवक होते हुए भी (शुभे) शुभ कर्मों में (निमिश्लाम्) प्रेमपूर्वक रत (पज्राम्) बलवती, सुन्दरी (युवतिम्) युवती को (आस्थापयन्त) उत्साहित करते हो ।

    भावार्थ - वेद के अनुसार सैनिकों का चरित्र इतना उच्च और महान् होना चाहिए कि जब वे शत्रुओं को जीतकर लौटें तो उनके स्वागत के लिए नाना प्रकार के पदार्थों को धारण किये हुए गृहपति गर्व के साथ यह कह सकें कि विजित देश की कोई भी युवती हमारे यौवन से भरपूर किसी भी सैनिक के विषय में यह नहीं कह सकती कि हमारे किसी भी सैनिक की किसी भी चेष्टा से भयभीत होकर उन्हें अपना अमुक कार्य छोड़ना पड़ा । यह है वैदिक योद्धा का आदर्श ! छत्रपति शिवाजी और दुर्गादास राठौर इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं । यह तो युद्ध का आदर्श है परन्तु आज बिना युद्ध के ही, शान्ति के वातावरण में भी युवतियों का मार्ग में चलना कठिन है। उनपर आवाजें कसी जाती हैं, उन्हें कुदृष्टि से देखा जाता है। आओ, संसार को सन्मार्ग पर लाने के लिए हम अपने चरित्रों को आदर्श बनाते हुए वेदों का नाद बजाएँ ।

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