Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1565
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः देवता - अग्निः छन्दः - आनुष्टुभः प्रगाथः (गायत्री) स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
2

यं꣡ जना꣢꣯सो ह꣣वि꣡ष्म꣢न्तो मि꣣त्रं꣢꣫ न स꣣र्पि꣡रा꣢सुतिम् । प्र꣣श꣡ꣳस꣢न्ति꣣ प्र꣡श꣢स्तिभिः ॥१५६५॥

स्वर सहित पद पाठ

यम् । ज꣡ना꣢꣯सः । ह꣣वि꣡ष्म꣢न्तः । मि꣣त्र꣢म् । मि꣣ । त्र꣢म् । न । स꣣र्पि꣡रा꣢सुतिम् । स꣣र्पिः꣢ । आ꣣सुतिम् । प्रश꣡ꣳस꣢न्ति । प्र꣣ । श꣡ꣳस꣢꣯न्ति । प्र꣡श꣢꣯स्तिभिः । प्र । श꣣स्तिभिः ॥१५६५॥


स्वर रहित मन्त्र

यं जनासो हविष्मन्तो मित्रं न सर्पिरासुतिम् । प्रशꣳसन्ति प्रशस्तिभिः ॥१५६५॥


स्वर रहित पद पाठ

यम् । जनासः । हविष्मन्तः । मित्रम् । मि । त्रम् । न । सर्पिरासुतिम् । सर्पिः । आसुतिम् । प्रशꣳसन्ति । प्र । शꣳसन्ति । प्रशस्तिभिः । प्र । शस्तिभिः ॥१५६५॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1565
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
Acknowledgment

शब्दार्थ -
(ये) जो (न:) हमारे ( सूनव:) पुत्र हैं वे (अमृतस्य) अमर, अखण्ड, अविनाशी प्रभु की ( गिरः) वेदवाणियों को (शृण्वन्तु) सुनें और उसे सुनकर (नः) हमारे लिए (सुमृळीका:) उत्तम सुखकारी (भवन्तु ) हों ।

भावार्थ - प्रत्येक घर में प्रतिदिन वेद-पाठ होना चाहिए । जब हमारे घरों में यज्ञ और हवन होंगे, स्वाहा और स्वधाकार की ध्वनि उठेगी, वेदों का उद्घोष होगा तभी हमारे पुत्र वेद-ज्ञान को सुन सकेंगे । वेद सभी ज्ञान और विज्ञान का मूल है और अखिल शिक्षाओं का भण्डार है । जब हमारे पुत्र वेद के इस प्रकार के मन्त्रों को सुनेंगे अनुव्रतः पितुः पुत्रो मात्रा भवतु सम्मनाः । (अथर्ववेद ३ ।३० । २) 'पुत्र पिता के अनुकूल चलनेवाला हो और माता के साथ समान मनवाला हो ।' तो ये शिक्षाएँ उनके जीवन में आएँगी। इन वैदिक शिक्षाओं पर आचरण करते हुए वे अपने माता-पिता के लिए, परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए सुख, शान्ति, मङ्गल और कल्याण का कारण बनेंगे ।

इस भाष्य को एडिट करें
Top