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यजुर्वेद अध्याय - 36

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  • यजुर्वेद - अध्याय 36/ मन्त्र 12
    ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः देवता - आपो देवताः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
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    शन्नो॑ दे॒वीर॒भिष्ट॑य॒ऽआपो॑ भवन्तु पी॒तये॑।शंयोर॒भि स्र॑वन्तु नः॥१२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शम्। नः॒। दे॒वीः। अ॒भिष्ट॑ये। आपः॑। भ॒व॒न्तु॒। पी॒तये॑ ॥ शंयोः। अ॒भि। स्र॒व॒न्तु॒। नः॒ ॥१२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये । शँयोरभि स्रवन्तु नः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    शम्। नः। देवीः। अभिष्टये। आपः। भवन्तु। पीतये॥ शंयोः। अभि। स्रवन्तु। नः॥१२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 36; मन्त्र » 12
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    Bhajan -

    आज का वैदिक भजन 🙏 1148 हिन्दी
    ओ३म् शं नो॑ दे॒वीर॒भिष्ट॑य॒ आपो॑ भवन्तु पी॒तये॑ ।
    शं योर॒भि स्र॑वन्तु नः ।। १२ ।।
    यजुर्वेद 36/12 

    माहिन आनन्दन् परब्रह्म परमेश्वर  
    सुख सौभाग्य प्रदाता 
    परमानन्द सरस रस-दायक 
    भयभञ्जन सुखदाता
    शिव मङ्गलकारक दिव्य गुणोध  
    आधि-व्याधि शामक हे सुबोध ! 
    सुख-शान्ति की तुझसे है अभिलाषा
    माहिन आनन्दन् परब्रह्म परमेश्वर  
    सुख सौभाग्य प्रदाता 

    कण-कण निवासक कल्याणकारी 
    परम पिता परमात्मा 
    तुम हो आत्माओं की आत्मा 
    सतत् प्रवाहित स्रोत तुम्हारा 
    सुख-सौभाग्य ले आता 
    जो शुद्ध समृद्ध बनाता 
    ऊपर की ओर ही उठकर 
    जाते हैं प्रभु की ही ओर
    तुम बिन ना कोई दूजा 
    है सुख शान्ति का ठोर 
    सुख शान्ति की है तुझसे अभिलाषा
    माहिन आनन्दन् परब्रह्म परमेश्वर  
    सुख सौभाग्य प्रदाता 

    धारणा ध्यान समाधि से करते 
    साक्षात्कार प्रभु का 
    दृत-दिव्य प्रभु है अनूठा 
    आत्मविभोर हो जाते ऐसे 
    सुख शान्ति देती ऋजुता
    पा जाते आनन्द की वर्षा 
    उसे दिवस रात्रि हम पूजें
    करें ध्यान नित प्रभु का 
    होने लगे फिर हमको 
    अनुभव वितत विभु का 
    सुख-शान्ति की तुझसे है अभिलाषा
    माहिन आनन्दन् परब्रह्म परमेश्वर  
    सुख सौभाग्य प्रदाता 
    परमानन्द सरस रस-दायक 
    भयभञ्जन सुखदाता
    शिव मङ्गलकारक दिव्य गुणोध  
    आधि-व्याधि शामक हे सुबोध ! 
    सुख-शान्ति की तुझसे है अभिलाषा
    माहिन आनन्दन् परब्रह्म परमेश्वर  
    सुख सौभाग्य प्रदाता 

    रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
    रचना दिनाँक :--  १६.८.२०११   २०.२०सायं

    राग :- पहाड़ी
    गायन समय शाम 6:00 से 9:00 ,   ताल कहरवा ८ मात्रा     

    शीर्षक :- प्रभु हम पर सब ओर से वर्षा करें 🎧 723वां भजन🪔

    *तर्ज :- *
    736-00137

    विभु = सर्वव्यापक 
    माहिन = पूजनीय
    गुणोध = गुणों का समूह, अनंतगुण 
    सुबोध = उत्तम ज्ञान युक्त 
    दृत = आदरणीय 
    ऋजुता = सरलता 
     

    Vyakhya -

    प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇
    प्रभु हम पर सब ओर से वर्षा करें

     दिव्य गुणयुक्त सर्वव्यापक परमेश्वर सांसारिक सुख-सौभाग्य के लिए और परमानन्द रस के पाने के लिए हमारे लिए कल्याणकारी हो तथा रोगशामक एवं भय निवारक सुख विशेष कि हम पर सब ओर से वर्षा करें।
    दिव्यगुणों की खान और कण-कण में बसने वाले परमपिता परमात्मा से नानाविध सुख-सौभाग्यों के स्रोत इन जीवों के लिए, इन मनुष्यों के लिए सतत् प्रवाहित होते रहते हैं, इसलिए कि ये सुखी हों, प्रसन्न हों, खुशहाल हों, तृप्त हों, परन्तु यह सब कुछ पाकर भी जब ये सुखी नहीं हो पाते, शान्त नहीं हो पाते, तृप्त नहीं हो पाते, अर्थात् इस सब का रात दिवस सेवन करने पर भी जब ना तो इनके शारीरिक रोगों का ही शमन हो पाता है, और ना ही इनके भयों का निवारण हो पाता है। तात्पर्य यह है कि यह सब पूर्ववत ही आधि- व्याधियों से घिरे रहते हैं,तब इन सब सुख-सौभाग्य से कुछ ऊपर उठकर उस अनूठे दिव्य प्रभु की ओर ब्रह्म की ओर अग्रसर होते हैं जिससे कि यह सब- कुछ सतत् प्रवाहित हो रहा है, यह जानने के लिए कि वह सर्वदु:ख निवारक सुख विशेष कैसे और कहां मिलेगा?
    यह बोध जब ज्ञानी-ध्यानीयों से उन्हें मिल जाता है, तब से उस परब्रह्म आनन्दघन प्रभु का धारणा ध्यान समाधि द्वारा साक्षात् करने का हार्दिक प्रयास करते हैं। अपने इस सतत् प्रयास में एक दिन वह सफल होकर उस परम प्रभु में ऐसे विभोर हो जाते हैं कि फिर उनको ऐसा अनुभव होता है मानो उनके भीतर- बाहर के सकल कलेश मिट गए हों। सब आधियां व्याधियों नष्ट हो गई हों। सब रोग- शोक गायब हो गए हो। सच पूछो तो,अब उन सच्चे साधकों को ऐसा लगने लगता है मानो अन्दर बाहर से अर्थात् सब ओर से उन पर परब्रह्म परमेश्वर सुख शान्ति और आनन्द की वर्षा कर रहा है और वे उसमें आत्मा विभोर हो रहे हैं।
    🕉🧘‍♂️ईश- भक्ति-भजन
    भगवान् ग्रुप द्वारा🌹🙏
    वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएँ❗ 🌹🙏🌹
     

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