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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 176 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 176/ मन्त्र 2
    ऋषिः - सूनुरार्भवः देवता - अग्निः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    प्र दे॒वं दे॒व्या धि॒या भर॑ता जा॒तवे॑दसम् । ह॒व्या नो॑ वक्षदानु॒षक् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । दे॒वम् । दे॒व्या । धि॒या । भर॑त । जा॒तऽवे॑दसम् । ह॒व्या । नः॒ । व॒क्ष॒त् । आनु॒षक् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र देवं देव्या धिया भरता जातवेदसम् । हव्या नो वक्षदानुषक् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । देवम् । देव्या । धिया । भरत । जातऽवेदसम् । हव्या । नः । वक्षत् । आनुषक् ॥ १०.१७६.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 176; मन्त्र » 2
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 34; मन्त्र » 2

    Meaning -
    O scholars and experts, with your divine and brilliant intelligence and actions, serve Agni, spirit of the light and life of all that exists, which instantly bears our oblations abroad as well as brings us the creative rewards of yajna without fail.

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