ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 86/ मन्त्र 2
या पृत॑नासु दु॒ष्टरा॒ या वाजे॑षु श्र॒वाय्या॑। या पञ्च॑ चर्ष॒णीर॒भी॑न्द्रा॒ग्नी ता ह॑वामहे ॥२॥
स्वर सहित पद पाठया । पृत॑नासु । दु॒स्तरा॑ । या । वाजे॑षु । श्र॒वाय्या॑ । या । पञ्च॑ । च॒र्ष॒णीः । अ॒भि । इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑ । ता । ह॒वा॒म॒हे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
या पृतनासु दुष्टरा या वाजेषु श्रवाय्या। या पञ्च चर्षणीरभीन्द्राग्नी ता हवामहे ॥२॥
स्वर रहित पद पाठया। पृतनासु। दुस्तरा। या। वाजेषु। श्रवाय्या। या। पञ्च। चर्षणीः। अभि। इन्द्राग्नी इति। ता। हवामहे ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 86; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 32; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 32; मन्त्र » 2
Meaning -
We adore and solicit Indra and Agni which, among the forces of life, are indomitable, in the battles for power and prosperity, admirable, and among the five orders of society and among the five pranic energies are of prime importance.