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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 56 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 56/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - मरुतः छन्दः - भुरिगार्चीगायत्री स्वरः - षड्जः

    नकि॒र्ह्ये॑षां ज॒नूंषि॒ वेद॒ ते अ॒ङ्ग वि॑द्रे मि॒थो ज॒नित्र॑म् ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नकिः॑ । हि । ए॒षा॒म् । ज॒नूंषि॑ । वेदे॑ । ते । अ॒ङ्ग । वि॒द्रे॒ । मि॒थः । ज॒नित्र॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नकिर्ह्येषां जनूंषि वेद ते अङ्ग विद्रे मिथो जनित्रम् ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नकिः। हि। एषाम्। जनूंषि। वेद। ते। अङ्ग। विद्रे। मिथः। जनित्रम् ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 56; मन्त्र » 2
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 2

    Meaning -
    O dear seeker, no one really knows their origin and places of birth except that they together manifest in action and reveal their origin and generative power.

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