ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 56/ मन्त्र 2
नकि॒र्ह्ये॑षां ज॒नूंषि॒ वेद॒ ते अ॒ङ्ग वि॑द्रे मि॒थो ज॒नित्र॑म् ॥२॥
स्वर सहित पद पाठनकिः॑ । हि । ए॒षा॒म् । ज॒नूंषि॑ । वेदे॑ । ते । अ॒ङ्ग । वि॒द्रे॒ । मि॒थः । ज॒नित्र॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
नकिर्ह्येषां जनूंषि वेद ते अङ्ग विद्रे मिथो जनित्रम् ॥२॥
स्वर रहित पद पाठनकिः। हि। एषाम्। जनूंषि। वेद। ते। अङ्ग। विद्रे। मिथः। जनित्रम् ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 56; मन्त्र » 2
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्विद्वांस एव प्रकटकीर्तयो जायन्त इत्याह ॥
अन्वयः
अङ्ग जिज्ञासो ! ये ह्येषां जनूंषि नकिर्वेद ते मिथो जनित्रं विद्रे ॥२॥
पदार्थः
(नकिः) निषेधे (हि) यतः (एषाम्) (जनूंषि) जन्मानि (वेद) विदन्ति (ते) (अङ्ग) सुहृत् (विद्रे) लभन्ते (मिथः) परस्परम् (जनित्रम्) जन्मसाधनं कर्म ॥२॥
भावार्थः
ये विदुषां जन्मानि विद्याप्रापकाणि जन्मानि न विदुस्ते प्रसिद्धा न भवन्ति ये च विद्याजन्म प्राप्नुवन्ति ते हि कृत्यकृत्याः प्रसिद्धा जायन्त इत्युत्तरम् ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर विद्वान् जन ही प्रकट कीर्तिवाले होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (अङ्ग) मित्र जिज्ञासु ! जो (हि) जिस कारण (एषाम्) इन के (जनूंषि) जन्मों को (नकिः) नहीं (वेद) जानते हैं (ते) वे उसी कारण (मिथः) परस्पर (जनित्रम्) जन्म सिद्ध करानेवाले कर्म को (विद्रे) पाते हैं ॥२॥
भावार्थ
जिन विद्वानों के जन्मों को विद्या प्राप्ति करानेवाले न जानते हैं, वे प्रसिद्ध नहीं होते हैं और जो विद्या जन्म पाते हैं, वे ही कृतकृत्य और प्रसिद्ध होते हैं, यह उत्तर है ॥२॥
विषय
जीवों के जन्म मरणादि का विज्ञान।
भावार्थ
( एषां ) इन जीवों के ( जनूंषि ) जन्मों को (नकिः वेद हि ) निश्चय से कोई भी नहीं जानता । ( अङ्ग ) हे विद्वन् ! ( ते ) वे सब ( मिथः ) स्त्री पुरुष, नर मादा परस्पर मिलकर (जनित्रम् ) जन्म ( विद्वे ) प्राप्त कर लेते हैं । इसी प्रकार सेनापति सैन्य भटों की जन्म जाति कौन जाने ? वे परस्पर मिलकर अपना सैन्य रूप प्रकट करते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ।। मरुतो देवताः ॥ छन्दः -१ आर्ची गायत्री । २, ६, ७,९ भुरिगार्ची गायत्रीं । ३, ४, ५ प्राजापत्या बृहती । ८, १० आर्च्युष्णिक् । ११ निचृदार्च्युष्णिक् १२, १३, १५, १८, १९, २१ निचृत्त्रिष्टुप् । १७, २० त्रिष्टुप् । २२, २३, २५ विराट् त्रिष्टुप् । २४ पंक्तिः । १४, १६ स्वराट् पंक्तिः ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
वीरों का कर्त्तव्य
पदार्थ
पदार्थ - (एषां) = इन जीवों के (जनूंषि) = जन्मों को (नकिः) = वेद (हि) = निश्चय से कोई नहीं जानता। अङ्ग हे विद्वन् ! (ते) = वे सब (मिथ:) = स्त्री-पुरुष परस्पर मिलकर (जनित्रम्) = जन्म (विद्रे) = प्राप्त कर लेते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- सेनापति अपनी सेना के सैनिकों को जाति-पाति, क्षेत्र, सम्प्रदाय आदि से ऊपर उठकर परस्पर मिलकर रहने की प्रेरणा दे तथा क्षात्रधर्म का पालन करने हेतु संगठित सैन्य शक्ति विकसित करे।
मराठी (1)
भावार्थ
विद्वानांचा जन्म विद्याप्राप्ती करविणारा असतो हे जे जाणत नाहीत ते प्रसिद्ध नसतात व जे विद्याजन्म प्राप्त करतात तेच कृतकृत्य व प्रसिद्ध होतात. ॥ २ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O dear seeker, no one really knows their origin and places of birth except that they together manifest in action and reveal their origin and generative power.
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