ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 56/ मन्त्र 23
भूरि॑ चक्र मरुतः॒ पित्र्या॑ण्यु॒क्थानि॒ या वः॑ श॒स्यन्ते॑ पु॒रा चि॑त्। म॒रुद्भि॑रु॒ग्रः पृत॑नासु॒ साळ्हा॑ म॒रुद्भि॒रित्सनि॑ता॒ वाज॒मर्वा॑ ॥२३॥
स्वर सहित पद पाठभूरि॑ । च॒क्र॒ । म॒रु॒तः॒ । पित्र्या॑णि । उ॒क्थानि॑ । या । वः॒ । श॒स्यन्ते॑ । पु॒रा । चि॒त् । म॒रुत्ऽभिः॑ । उग्रः । पृत॑नासु । साळ्हा॑ । म॒रुत्ऽभिः॑ । इत् । सनि॑ता । वाज॑म् । अर्वा॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
भूरि चक्र मरुतः पित्र्याण्युक्थानि या वः शस्यन्ते पुरा चित्। मरुद्भिरुग्रः पृतनासु साळ्हा मरुद्भिरित्सनिता वाजमर्वा ॥२३॥
स्वर रहित पद पाठभूरि। चक्र। मरुतः। पित्र्याणि। उक्थानि। या। वः। शस्यन्ते। पुरा। चित्। मरुत्ऽभिः। उग्रः। पृतनासु। साळ्हा। मरुत्ऽभिः। इत्। सनिता। वाजम्। अर्वा ॥२३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 56; मन्त्र » 23
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 26; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 26; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्ते मनुष्याः किं किं कुर्युरित्याह ॥
अन्वयः
हे मरुतो ! वो योक्थानि पित्र्याणि शस्यन्ते पुरा तानि मरुद्भिस्सह पृतनासूग्रः साळ्हा मरुद्भिस्सह सनिताऽर्वेव वाजं प्राप्तश्चिदेव विजयते तानि यूयं भूरि चक्र ॥२३॥
पदार्थः
(भूरि) बहु (चक्र) कुर्वन्ति (मरुतः) वायुवद्वर्तमाना मनुष्याः (पित्र्याणि) पितॄणां सेवनादीनि (उक्थानि) प्रशंसनीयानि कर्माणि (या) यानि (वः) युष्माकम् (शस्यन्ते) स्तूयन्ते (पुरा) वाक् (चित्) अपि (मरुद्भिः) उत्तमैर्मनुष्यैस्सह (उग्रः) तेजस्वी (पृतनासु) सेनासु (साळ्हा) सहनकर्ता (मरुद्भिः) मनुष्यैः (इत्) एव (सनिता) विभाजकः (वाजम्) विज्ञानं वेगं वा (अर्वा) वेगवानश्व इव ॥२३॥
भावार्थः
ये मनुष्याः प्रशस्तानि कर्माणि कुर्वन्ति तेषां सदैव विजयो जायते ॥२३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वे मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (मरुतः) पवन के सदृश वर्त्तमान मनुष्यो ! (वः) आप लोगों के (या) जो (उक्थानि) प्रशंसा करने योग्य कर्म्म और (पित्र्याणि) पितरों के सेवन आदि (शस्यन्ते) स्तुति किये जाते हैं (पुरा) पहिले उनको (मरुद्भिः) उत्तम मनुष्यों के साथ (पृतनासु) सेनाओं में (उग्रः) तेजस्वी (साळ्हा) सहनेवाला पुरुष और (मरुद्भिः) मनुष्यों के साथ (सनिता) विभाग करनेवाला (अर्वा) वेगयुक्त घोड़ा जैसे वैसे (वाजम्) विज्ञान वा वेग को प्राप्त हुआ (चित्) भी जीतता है, उनको आप लोग (भूरि) बहुत (चक्र) करते हैं ॥२३॥
भावार्थ
जो मनुष्य प्रशंसनीय कर्मों को करते हैं, उनका सदा ही विजय होता है ॥२३॥
विषय
वीरों विद्वानों के वायुओं के तुल्य कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे मरुतः ) विद्वान्, बलवान् पुरुषो ! ( या ) जिन कर्मों का ( वः ) आप लोगों के हितार्थ ( पुरा चित् ) पहले ही ( शस्यन्ते ) उपदेश किया गया है उन ( पित्र्याणि ) माता पिता की सेवा और पालक जनोचित ( उक्थानि) प्रशंसनीय कर्मों को आप ( भूरि ) खूब ( चक्र ) किया करो । ( उग्रः ) बलवान् पुरुष ( मरुद्भिः ) वायुवत् बलवान् पुरुषों से ही ( साढा ) शत्रु को पराजय करने वाला और ( अर्वा मरुद्भिः यथा वाजं सनिता ) जैसे अश्व प्राण के बल से वेग को प्राप्त करता है उसी प्रकार ( अर्वा ) शत्रुहिंसक पुरुष ही ( मरुद्भिः ) विद्वान् पुरुषों की सहायता से ही ( वाजं सनिता ) संग्राम करने में समर्थ होता है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ।। मरुतो देवताः ॥ छन्दः -१ आर्ची गायत्री । २, ६, ७,९ भुरिगार्ची गायत्रीं । ३, ४, ५ प्राजापत्या बृहती । ८, १० आर्च्युष्णिक् । ११ निचृदार्च्युष्णिक् १२, १३, १५, १८, १९, २१ निचृत्त्रिष्टुप् । १७, २० त्रिष्टुप् । २२, २३, २५ विराट् त्रिष्टुप् । २४ पंक्तिः । १४, १६ स्वराट् पंक्तिः ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
शत्रु हिंसक सेना
पदार्थ
पदार्थ- हे (मरुतः) = विद्वान् पुरुषो! (या) = जिन कर्मों का (वः) = आप लोगों के (हितार्थ पुरा चित्) = पहले ही (शस्यन्ते) = उपदेश किया जाता है उन (पित्र्याणि) = माता-पिता की सेवा और पालक जनोचित (उक्थानि) = कर्मों को आप (भूरि) = खूब (चक्र) = करो। (उग्रः) = बलवान् पुरुष (मरुद्भिः) = बलवान् पुरुषों से ही (साढा) = शत्रु को पराजय करनेवाला और (अर्वा मरुद्भिः यथा वाजं सनिता) = जैसे अश्व प्राण के बल से वेग को प्राप्त करता है वैसे ही (अर्वा) = शत्रुहिंसक पुरुष (मरुद्भिः) = विद्वान् पुरुषों की सहायता से वाजं सनिता संग्राम करने में समर्थ होता है।
भावार्थ
भावार्थ- विद्वान् जन उपदेश करें कि माता-पिता तथा वे जन जो अपने कर्मों से आपका पालन करते हैं उन सबका आदर करो। बलवान् पुरुष प्राणशक्ति को धारण कर विद्वानों के परामर्श से हिंसक शत्रुओं को मारकर संग्राम में विजयी हों।
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे प्रशंसनीय कर्म करतात त्यांचा सदैव विजय होतो. ॥ २३ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Maruts, vibrant leaders and pioneers of humanity, many are your deeds and songs in honour of the forefathers which have been sung and celebrated since times immemorial. It is by virtue of the Maruts that the haughty warrior wins the battles, and it is by the Maruts that the sharer gets his food and the contesting horse wins the race.
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