ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 56/ मन्त्र 4
ए॒तानि॒ धीरो॑ नि॒ण्या चि॑केत॒ पृश्नि॒र्यदूधो॑ म॒ही ज॒भार॑ ॥४॥
स्वर सहित पद पाठए॒तानि॑ । धीरः॑ । नि॒ण्या । चि॒के॒त॒ । पृश्निः॑ । यत् । ऊधः॑ । म॒ही । ज॒भार॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एतानि धीरो निण्या चिकेत पृश्निर्यदूधो मही जभार ॥४॥
स्वर रहित पद पाठएतानि। धीरः। निण्या। चिकेत। पृश्निः। यत्। ऊधः। मही। जभार ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 56; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्विद्वान् किं कुर्यादित्याह ॥
अन्वयः
यो धीरः यदूधः पृश्निर्महो जभार तद्वदेतानि निण्या चिकेत जानीयात्स गृहभारं धर्तुं शक्नुयात् ॥४॥
पदार्थः
(एतानि) (धीरः) मेधावी विद्वान् (निण्या) निश्चितानि (चिकेत) (पृश्निः) अन्तरिक्षमिव गम्भीराशयोऽक्षोभः (यत्) (ऊधः) दुग्धाधारम् (मही) पृथिवी (जभार) बिभर्ति ॥४॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा पृथिवी सूर्यश्च सर्वान् गृहान् बिभर्ति तथैव ये विद्वांसो निर्णीतान् सिद्धान्ताञ्जानन्ति ते सर्वत्र सत्कर्तव्या भवन्ति ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर विद्वान् जन क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
जो (धीरः) बुद्धिमान् विद्वान् (यत्) जैसे (ऊधः) दुग्धधारायुक्त और (पृश्निः) अन्तरिक्ष के (मही) तथा पृथिवी (जभार) धारण करती है, वैसे क्षोभ रहित निष्कम्प गम्भीर (एतानि) इन (निण्या) पदार्थों को जो (चिकेत) जाने, वह घर के भार को धर सके ॥४॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जैसे पृथिवी और सूर्य्य सब गृहों को धारण करते हैं, वैसे जो विद्वान् जन निर्णीत सिद्धान्तों को जानते हैं, वे सर्वत्र सत्कार करने योग्य होते हैं ॥४॥
विषय
जीवों के जन्म मरणादि का विज्ञान।
भावार्थ
( पृश्निः ) सेचन करने वाला सूर्य और ( मही ) भूमि ( यत् ) जिस प्रकार से ( ऊधः ) जलधारक मेघ को ( जभार ) धारण करता है इसी प्रकार ( पृश्निः ) वीर्यसेक्ता पुरुष और ( मही ) पूज्य माता ( यत् ) जो मिलकर बालक और उसके पान के लिये (ऊधः) स्तनादि धरती है (एतानि निण्या) इन सत्य सिद्धान्तों को ( धीरः ) बुद्धिमानू पुरुष (चिकेत ) अवश्य जाने ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ।। मरुतो देवताः ॥ छन्दः -१ आर्ची गायत्री । २, ६, ७,९ भुरिगार्ची गायत्रीं । ३, ४, ५ प्राजापत्या बृहती । ८, १० आर्च्युष्णिक् । ११ निचृदार्च्युष्णिक् १२, १३, १५, १८, १९, २१ निचृत्त्रिष्टुप् । १७, २० त्रिष्टुप् । २२, २३, २५ विराट् त्रिष्टुप् । २४ पंक्तिः । १४, १६ स्वराट् पंक्तिः ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
बुद्धिमान पुरुष
पदार्थ
पदार्थ- (पृश्नि:) = सेवन करनेवाला सूर्य और (मही) = भूमि (यत्) = जैसे (ऊधः) = जलधारक मेघ को (जभार) = धारण करता है वैसे (पृश्निः) = वीर्यसेक्ता पुरुष और (मही) = पूज्य माता (यत्) = जो मिलकर बालक और उसके पान के लिये (ऊधः) = स्तनादि धरती है (एतानि निण्या) = इन सत्य सिद्धान्तों को (धीरः) = बुद्धिमान् पुरुष चिकेत जाने।
भावार्थ
भावार्थ- जिस प्रकार सूर्य बादलों को भूमि पर बरसा का उत्तम औषधादि की उत्पत्ति करता है। उसी प्रकार बुद्धिमान् स्त्री-पुरुष गर्भाधान संस्कार करके उत्तम सन्तान को उत्पन्न करते हैं। माता उस सन्तान को उत्तम संस्कार प्रदान करती हुई स्तनपान करावे।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे पृथ्वी व सूर्य सर्व घरे धारण करतात तसे जे विद्वान लोक निश्चित सिद्धांत जाणतात ते सर्वत्र सत्कार करण्यायोग्य असतात. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The wise and resolute scholar knows these mysterious forces, he who knows how the sun and the starry sky hold the earth, and the earth, like the cow, holds the milky food for life.$im it
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal