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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 56 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 56/ मन्त्र 21
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - मरुतः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    मा वो॑ दा॒त्रान्म॑रुतो॒ निर॑राम॒ मा प॒श्चाद्द॑ध्म रथ्यो विभा॒गे। आ नः॑ स्पा॒र्हे भ॑जतना वस॒व्ये॒३॒॑ यदीं॑ सुजा॒तं वृ॑षणो वो॒ अस्ति॑ ॥२१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा । वः॒ । दा॒त्रात् । म॒रु॒तः॒ । निः । अ॒रा॒म॒ । मा । प॒श्चात् । द॒ध्म॒ । र॒थ्यः॒ । वि॒ऽभा॒गे । आ । नः॒ । स्पा॒र्हे । भ॒ज॒त॒न॒ । व॒स॒व्ये॑ । यत् । ई॒म् । सु॒ऽजा॒तम् । वृ॒ष॒णः॒ । वः॒ । अस्ति॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा वो दात्रान्मरुतो निरराम मा पश्चाद्दध्म रथ्यो विभागे। आ नः स्पार्हे भजतना वसव्ये३ यदीं सुजातं वृषणो वो अस्ति ॥२१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा। वः। दात्रात्। मरुतः। निः। अराम। मा। पश्चात्। दध्म। रथ्यः। विऽभागे। आ। नः। स्पार्हे। भजतन। वसव्ये। यत्। ईम्। सुऽजातम्। वृषणः। वः। अस्ति ॥२१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 56; मन्त्र » 21
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 26; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्याः कीदृशा भवन्तीत्याह ॥

    अन्वयः

    हे मरुतो ! यथा वयं वो दात्रान्मा निरराम, हे रथ्यो ! वयं पश्चान्मा दध्म, हे वृषभो ! वो यत्सुजातमस्ति तस्मिन् वसव्ये स्पार्हे विभागे यूयं नोऽस्मानीमा भजतन ॥२१॥

    पदार्थः

    (मा) (वः) युष्मान् (दात्रात्) दानात् (मरुतः) वायव इव मनुष्याः (निः) नितराम् (अराम) (मा) (पश्चात्) (दध्म) गच्छेम। दध्यतीति गतिकर्मा। (निघं०२.१४)(रथ्यः) बहवो रथा विद्यन्ते येषां ते (विभागे) विभजन्ति यस्मिन् तस्मिन् व्यवहारे (आ) (नः) अस्मान् (स्पार्हे) स्पृहणीये (भजतना) सेवध्वम्। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (वसव्ये) वसुषु द्रव्येषु भवे (यत्) (ईम्) सर्वतः (सुजातम्) सुष्ठु प्रसिद्धं सुखम् (वृषणः) (वः) युष्माकम् (अस्ति) ॥२१॥

    भावार्थः

    मनुष्याः सदैव विद्वद्भ्यो देयात्सत्यासत्ययोर्विभागात्पृथङ्मा भवन्तु यत्किञ्चिदपि श्रेष्ठं सुखं भवेत्तत्सर्वस्मै निवेदयन्तु ॥२१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्य कैसे होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (मरुतः) पवनों के समान मनुष्यो ! जैसे हम लोग (वः) तुम को (दात्रात्) दान से (मा) मत (निः, अराम) अलग करें, हे (रथ्यः) बहुत रथोंवालो ! हम लोग (पश्चात्) पीछे से (मा, दध्म) मत जावें, हे (वृषणः) वर्षा करानेवालो ! (वः) तुम्हारा (यत्) जो (सुजातम्) सुन्दर प्रसिद्ध सुख (अस्ति) है उस (वसव्ये) द्रव्यों में हुए (स्पार्हे) इच्छा करने योग्य (विभागे) विभाग जिसमें कि बांटते हैं उस में तुम (नः) हम लोगों को (ईम्) सब ओर से (आ, भजतन) अच्छे प्रकार सेवो ॥२१॥

    भावार्थ

    मनुष्य सदैव विद्वानों के लिये देने योग्य सत्यासत्य व्यवहार से अलग न होवें, जो कुछ भी उत्तम सुख हो, उसको सब के लिये निवेदन करें ॥२१॥

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    विषय

    वीरों विद्वानों के वायुओं के तुल्य कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( मरुतः ) विद्वान् एवं वीर पुरुषो ! हम लोग ( वः ) आप लोगों को ( दात्रात् ) दान करने से ( मा निर् अराम ) कभी न रोकें, और ( वः दात्रात् मा निर् अराम ) आप लोगों के प्रति देने से हम कभी स्वयं न रुकें । हे ( रथ्यः ) उत्तम अश्वारोही जनो ! (विभागे) धन के विभाग से (नः पश्चात् मा दध्म) आप लोगों को पीछे न रक्खें । हे ( वृषणः ) बलवान्, सुखवर्षक उदार जनो ! ( वः यत् ईम् सुजातम् अस्ति ) आप लोगों का जो भी उत्तम द्रव्य है उसे ( वसव्ये ) धन सम्बन्धी (स्पार्हे ) अभिलाषा योग्य पदार्थ के निमित्त ( नः आ भजतन ) हमें प्राप्त करो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ।। मरुतो देवताः ॥ छन्दः -१ आर्ची गायत्री । २, ६, ७,९ भुरिगार्ची गायत्रीं । ३, ४, ५ प्राजापत्या बृहती । ८, १० आर्च्युष्णिक् । ११ निचृदार्च्युष्णिक् १२, १३, १५, १८, १९, २१ निचृत्त्रिष्टुप् । १७, २० त्रिष्टुप् । २२, २३, २५ विराट् त्रिष्टुप् । २४ पंक्तिः । १४, १६ स्वराट् पंक्तिः ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    उदार बनो

    पदार्थ

    पदार्थ - हे (मरुतः) = वीर पुरुषो! हम (वः) = आपको (दात्रात्) = दान करने से (मा निर् अराम) = न रोकें और (वः दात्रात् मा निर् अराम) = आप लोगों के प्रति देने से हम न रुकें। हे (रथ्यः) = रथारोही जनो ! (विभागे) = धन के विभाग से (नः पश्चात् मा दध्म) = आप को हम पीछे न रक्खें। हे (वृषण:) = सुखवर्षक जनो! (वः यत् ईम् सुजातम् अस्ति) = आप लोगों का जो उत्तम द्रव्य है उसे (वसव्ये) = धन-सम्बन्धी (स्पार्हे) = अभिलाषा- योग्य पदार्थ के लिये (नः आ भजतन) = हमें प्राप्त करो।

    भावार्थ

    भावार्थ- राष्ट्र के समद्ध पुरुष उदारता के साथ राष्ट्र कार्यों में दान करें। राष्ट्र के सामान्य जन भी अपने सामर्थ्यानुसार उदारतापूर्वक विद्वानों तथा अन्य पात्रों को दान करें। विद्वान् तथा राजपुरुष भी अपने धन में से कुछ अंश दान अवश्य करें।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांनी सदैव विद्वानांना देण्यायोग्य सत्यासत्य व्यवहारापासून दूर नसावे. जे कोणते उत्तम सुख असेल ते सर्वांना सांगावे. ॥ २१ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Maruts, dynamic explorers, creators and distributors, masters of the chariot, never shall we stop you from giving and never must we be left behind in sharing and distribution. O generous powers, whatever your wealth of desirable value worthy of life and settled peace, let us share it with you.

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