ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 56/ मन्त्र 6
यामं॒ येष्ठाः॑ शु॒भा शोभि॑ष्ठाः श्रि॒या संमि॑श्ला॒ ओजो॑भिरु॒ग्राः ॥६॥
स्वर सहित पद पाठयाम॑म् । येष्ठाः॑ । शु॒भा । शोभि॑ष्ठाः । श्रि॒या । सम्ऽमि॑श्लाः । ओजः॑ऽभिः । उ॒ग्राः ॥
स्वर रहित मन्त्र
यामं येष्ठाः शुभा शोभिष्ठाः श्रिया संमिश्ला ओजोभिरुग्राः ॥६॥
स्वर रहित पद पाठयामम्। येष्ठाः। शुभा। शोभिष्ठाः। श्रिया। सम्ऽमिश्लाः। ओजःऽभिः। उग्राः ॥६॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 56; मन्त्र » 6
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 6
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अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्ता नार्यः कीदृश्यो भवेयुरित्याह ॥
अन्वयः
हे गृहस्था ! याः शुभा शोभिष्ठाः श्रिया संमिश्ला येष्ठा ओजोभिरुग्राः सत्यो यामं प्रापणीयं यान्ति ताः गृहस्थैस्सम्माननीयाः ॥६॥
पदार्थः
(यामम्) प्रहरं प्राप्तव्यं वा (येष्ठाः) अतिशयेन यातारः (शुभा) शोभनेन (शोभिष्ठाः) अतिशयेन शोभायुक्ताः (श्रिया) धनेन (संमिश्लाः) सम्यक् मित्रत्वेन मिश्रिताः (ओजोभिः) पराक्रमादिभिः (उग्राः) कठिनगुणकर्मस्वभावाः ॥६॥
भावार्थः
हे गृहस्था ! याः शाला श्रियान्नादिभिर्युक्ताः शोभमानाः प्रापणीयं सुखं प्रयच्छन्ति ताः पतिव्रता स्त्रिय इव सुशोभनीयाः सततं कुरुत ॥६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वे स्त्री कैसी हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे गृहस्थो ! जो (शुभा) शोभन (शोभिष्ठाः) अतीव शोभायुक्त (श्रिया) धन से (संमिश्लाः) अच्छे प्रकार मित्रता के साथ मिली हुई (येष्ठाः) अतीव प्राप्त होने और (ओजोभिः) पराक्रम आदि से (उग्राः) कठिन गुण-कर्म-स्वभाववाली होती हुई (यामम्) प्राप्त होनेवाले व्यवहार को पहुँचती हैं, वे गृहस्थों को मान करने योग्य हैं ॥६॥
भावार्थ
हे गृहस्थो ! जो शालाधर धन और अन्नादि पदार्थों से युक्त शोभायमान प्राप्त होने योग्य सुख को देते हैं, उनको पतिव्रता स्त्रियों के समान सुन्दर शोभायुक्त निरन्तर करो ॥६॥
विषय
योग्य भूमियों स्त्रियों को सदुपदेश ।
भावार्थ
इसी प्रकार राजा की प्रजाएं और गृहस्थ में स्त्रियें और सेनापति की सेनाएं भी (येष्ठाः) अपने लक्ष्य की ओर जाने में उत्तम, ( शुभाः) कान्तियुक्त, कल्याणकारिणी ( शोभिष्ठाः ) उत्तम रीति से सुशोभित ( श्रिया ) उत्तम लक्ष्मी से ( सं मिश्लाः ) संयुक्त वा (श्रिया ) आश्रय करने योग्य सहचर, सहचरी से युक्त (ओजाभिः ) बल पराक्रमों से ( उग्राः ) सदा बलवान् हों । वे (यामं येष्ठाः ) उत्तम नियम, प्रबन्ध, विवाहादि बन्धनों को प्राप्त हों।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ।। मरुतो देवताः ॥ छन्दः -१ आर्ची गायत्री । २, ६, ७,९ भुरिगार्ची गायत्रीं । ३, ४, ५ प्राजापत्या बृहती । ८, १० आर्च्युष्णिक् । ११ निचृदार्च्युष्णिक् १२, १३, १५, १८, १९, २१ निचृत्त्रिष्टुप् । १७, २० त्रिष्टुप् । २२, २३, २५ विराट् त्रिष्टुप् । २४ पंक्तिः । १४, १६ स्वराट् पंक्तिः ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
लक्ष्यगामी सेना
पदार्थ
पदार्थ-प्रजाएँ, स्त्रियें और सेनाएँ भी (येष्ठाः) = लक्ष्य की ओर जाने में उत्तम (शुभ्राः) = कान्तियुक्त, (शोभिष्ठाः) = शोभायुक्त श्रिया लक्ष्मी से (सं-मिश्ला:) = संयुक्त (ओजोभिः) = पराक्रमों से (उग्राः) = बलवान् हों। वे (यामं येष्ठाः) = उत्तम नियम, प्रबन्धों को प्राप्त हों।
भावार्थ
भावार्थ- सेनापति अपनी सेना को लक्ष्य की ओर संगठित रूप से बढ़ने के लिए तेजस्वी, बलवान् तथा पराक्रमी सैनिकों से सज्जित करे। ऐसी सेना ही विजयश्री पाने के योग्य होती है।
मराठी (1)
भावार्थ
हे गृहस्थांनो! जी घरे, धन व अश्व इत्यादी निरनिराळ्या पदार्थांनी युक्त असून सुशोभित असतात व सुख देतात त्यांना पतिव्रता स्त्रियांप्रमाणे निरंतर सुंदर व शोभिवंत बनवा. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The Maruts, warriors of the nation, are unfailing marksmen shooting to the target straight, most decent of manners and courtesy, graceful with culture and chivalry, and blazing with heroic splendour.
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