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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 56 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 56/ मन्त्र 8
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - मरुतः छन्दः - आर्च्युष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    शु॒भ्रो वः॒ शुष्मः॒ क्रुध्मी॒ मनां॑सि॒ धुनि॒र्मुनि॑रिव॒ शर्ध॑स्य धृ॒ष्णोः ॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शु॒भ्रः । वः॒ । शुष्मः॑ । क्रुध्मी॑ । मनां॑सि । धुनिः॑ । मुनिः॑ऽइव । शर्ध॑स्य । धृ॒ष्णोः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शुभ्रो वः शुष्मः क्रुध्मी मनांसि धुनिर्मुनिरिव शर्धस्य धृष्णोः ॥८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शुभ्रः। वः। शुष्मः। क्रुध्मी। मनांसि। धुनिः। मुनिःऽइव। शर्धस्य। धृष्णोः ॥८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 56; मन्त्र » 8
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्गृहस्थः किं कर्म कुर्यादित्याह ॥

    अन्वयः

    हे गृहस्था ! वो युष्माकं धार्मिकेषु शुभ्रः शुष्मोऽस्तु दुष्टेषु क्रुध्मी मनांसि सन्तु मुनिरिव शर्धस्य धृष्णोर्धुनिरिव वागस्तु ॥८॥

    पदार्थः

    (शुभ्रः) शुद्धः प्रशंसनीयः (वः) युष्माकम् (शुष्मः) बलयुक्तो देहः (क्रुध्मी) क्रोधशीलानि (मनांसि) अन्तःकरणानि (धुनिः) कम्पनं चेष्टाकरणम् (मुनिरिव) यथा मननशीलो विद्वांस्तथा (शर्धस्य) बलयुक्तस्य (धृष्णोः) दृढस्य ॥८॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। ये गृहस्थाः श्रेष्ठैस्सह सन्धिं दुष्टैस्सह पृथग्भावं रक्षन्ति ते बहुबलं लभन्ते ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर गृहस्थ कौन काम करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे गृहस्थो ! (वः) तुम्हारा धार्मिक जनों में (शुभ्रः) प्रशंसनीय (शुष्मः) बलयुक्त देह हो, दुष्टों में (क्रुध्मी) क्रोधशील (मनांसि) मन हों (मुनिरिव) मननशील विद्वान् के समान (शर्धस्य) बलयुक्त बली (धृष्णोः) दृढ़ के (धुनिः) चेष्टा करने के समान वाणी हो ॥८॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो गृहस्थ जन श्रेष्ठों के साथ मिलाप और दुष्टों के साथ अलग होना रखते हैं, वे बहुत बल पाते हैं ॥

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    विषय

    सेनानायक के उत्तम गुण और योग्यता ।

    भावार्थ

    हे वीर प्रजाजनो ! विद्वानो एवं जीवो ! ( वः ) आप लोगों का ( शुष्मः ) बल, बलवान् देह (शुभ्रः ) शोभायुक्त, प्रशंसनीय हो । आप लोगों के ( मनांसि ) मन ( क्रुध्मी) दुष्टों के प्रति क्रोधयुक्त हों । और ( शर्धस्य ) आप लोगों के बलवान् और ( धृष्णो: ) शत्रुपराजयकारी सैन्य का ( धुनिः ) सञ्चालक शत्रुओं और अधीनस्थों को कंपाने हारा, प्रभाववान् नायक ( मुनिः इव ) मननशील विद्वान् के समान गम्भीर विचारशील हो । सेना का नायक ओछा और अति कटुभाषी, क्षुद्रमति न हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ।। मरुतो देवताः ॥ छन्दः -१ आर्ची गायत्री । २, ६, ७,९ भुरिगार्ची गायत्रीं । ३, ४, ५ प्राजापत्या बृहती । ८, १० आर्च्युष्णिक् । ११ निचृदार्च्युष्णिक् १२, १३, १५, १८, १९, २१ निचृत्त्रिष्टुप् । १७, २० त्रिष्टुप् । २२, २३, २५ विराट् त्रिष्टुप् । २४ पंक्तिः । १४, १६ स्वराट् पंक्तिः ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    दुष्टों का दमन

    पदार्थ

    पदार्थ- हे प्रजाजनो! (वः) = आप लोगों का (शुष्मः) = बल (शुभ्रः) = प्रशंसनीय हो । आप लोगों के (मनांसि) = मन (क्रुध्मी) = दुष्टों के प्रति क्रोधयुक्त हों और (शर्धस्य) = आप के बलवान् और (धृष्णोः) = शत्रुपराजयकारी सैन्य का (धुनि:) = नायक शत्रुओं को कम्पाने हारा (मुनिः इव) = मननशील के समान विचारशील हो।

    भावार्थ

    भावार्थ- सेनापति शत्रुओं को कंपानेवाला, प्रभावी तथा गम्भीर विचारशील हो। उसके सैनिक उन्नत देह, बल तथा शत्रु के प्रति क्रोधवाले हों। ऐसी सेना दुष्टों का दमन करने में समर्थ होती है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे गृहस्थ श्रेष्ठांबरोबर मेळ व दुष्टांशी पृथक भावाने वागतात ते अत्यंत बल प्राप्त करतात. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O nation of Maruts, redoubtable challengers of the enemy, blazing white and pure is your strength and courage, righteous and passionate, your minds are alert, agile and thoughtful like that of a sage and your power is invulnerable.

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