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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 56 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 56/ मन्त्र 11
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - मरुतः छन्दः - निचृदार्च्युष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    स्वा॒यु॒धास॑ इ॒ष्मिणः॑ सुनि॒ष्का उ॒त स्व॒यं त॒न्वः१॒॑ शुम्भ॑मानाः ॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒ऽआ॒यु॒धासः॑ । इ॒ष्मिणः॑ । सु॒ऽनि॒ष्काः । उ॒त । स्व॒यम् । त॒न्वः॑ । शुम्भ॑मानाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वायुधास इष्मिणः सुनिष्का उत स्वयं तन्वः१ शुम्भमानाः ॥११॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुऽआयुधासः। इष्मिणः। सुऽनिष्काः। उत। स्वयम्। तन्वः। शुम्भमानाः ॥११॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 56; मन्त्र » 11
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः ! ये स्वायुधास इष्णिणः सुनिष्का उत स्वयं तन्वः शुम्भमानास्सन्ति त एव विजयप्रशंसे प्राप्नुवन्ति ॥११॥

    पदार्थः

    (स्वायुधासः) शोभनान्यायुधानि येषान्ते (इष्मिणः) इच्छान्नादियुक्ताः (सुनिष्काः) शोभनानि निष्काणि सौवर्णानि येषां ते (उत) (स्वयम्) (तन्वः) शरीराणि (शुम्भमानाः) शोभमानाः ॥११॥

    भावार्थः

    ये धनुर्वेदमधीत्यारोगशरीरा युद्धविद्याकुशलास्सन्ति त एव धनधान्ययुक्ता भवन्ति ॥११॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जो (स्वायुधासः) अच्छे हथियारोंवाले (इष्मिणः) इच्छा और जलादि पदार्थों से युक्त (सुनिष्काः) जिन के सुन्दर सुवर्ण के गहने विद्यमान (उत) और (स्वयम्) आप (तन्वः) शरीरों की (शुम्भमानाः) शोभा करते हुए वर्त्तमान हैं, वे ही विजय और प्रशंसा को पाते हैं ॥११॥

    भावार्थ

    जो धुनर्वेद को पढ़ के आरोग्ययुक्त शरीर और युद्ध विद्या में कुशल हैं, वे ही धनधान्ययुक्त होते हैं ॥११॥

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    विषय

    वीरों विद्वानों के वायुओं के तुल्य कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे वीर ! विद्वान् पुरुषो ! आप लोग ( स्वायुधासः ) उत्तम शस्त्रास्त्र सम्पन्न, ( इष्मिणः) उत्तम अन्न के स्वामी, ( सु-निष्काः ) उत्तम सुवर्णादि के मोहरों से व्यवहार करने और उनको पदकादि रूप में शोभार्थ धारण करने वाले ( उत ) और ( स्वयं ) स्वयं ( तन्व: शुम्भमानाः ) अपने शरीरों को सुशोभित करने वाले होओ। अध्यात्म में—हे उत्तम जीवो ! आप लोग (स्वायुधासः = स्व-आयुधासः ) उत्तम हथियारों वाले वा स्वयं अपने काम क्रोध आदि दुष्ट भीतरी शत्रुओं से लड़ने हारे ( इष्मिणः ) उत्तम इच्छा शक्ति से युक्त ( सु-निष्काः) सुखपूर्वक देह से निष्क्रमण करने में समर्थ, और केवल देहमात्र से अलंकृत हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ।। मरुतो देवताः ॥ छन्दः -१ आर्ची गायत्री । २, ६, ७,९ भुरिगार्ची गायत्रीं । ३, ४, ५ प्राजापत्या बृहती । ८, १० आर्च्युष्णिक् । ११ निचृदार्च्युष्णिक् १२, १३, १५, १८, १९, २१ निचृत्त्रिष्टुप् । १७, २० त्रिष्टुप् । २२, २३, २५ विराट् त्रिष्टुप् । २४ पंक्तिः । १४, १६ स्वराट् पंक्तिः ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    वीर योद्धा

    पदार्थ

    पदार्थ- हे विद्वान् पुरुषो! आप लोग (स्वायुधासः) = उत्तम (शस्त्रास्त्र) = सम्पन्न, (इष्मिणः) = अन्न के स्वामी, (सु-निष्का:) = उत्तम सुवर्णादि के मोहरों से व्यवहार करनेवाले (उत) = और उनसे (स्वयं) = स्वयं (तन्वः शुम्भमानाः) = अपने शरीरों को सुशोभित करनेवाले होओ।

    भावार्थ

    भावार्थ- वीर योद्धा हर समय तीक्ष्ण और उत्तम अस्त्र-शस्त्रों को अपने शरीर पर धारण किये हुए सन्नद्ध रहते हैं। यही उनकी शोभा है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे धनुर्वेद शिकून आरोग्ययुक्त शरीर बनवितात व युद्धविद्येत कुशल असतात तेच धनधान्याने युक्त होतात. ॥ ११ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Wielders of wondrous weapons, anxious creators of food and energy, noble and meticulous in matters of wealth and vitality, and keeping your form and personality in top condition of dignity and grace, that’s what you are.

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