ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 56/ मन्त्र 5
सा विट् सु॒वीरा॑ म॒रुद्भि॑रस्तु स॒नात्सह॑न्ती॒ पुष्य॑न्ती नृ॒म्णम् ॥५॥
स्वर सहित पद पाठसा । विट् । सु॒ऽवीरा॑ । म॒रुत्ऽभिः॑ । अ॒स्तु॒ । स॒नात् । सह॑न्ती । पुष्य॑न्ती । नृ॒म्णम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
सा विट् सुवीरा मरुद्भिरस्तु सनात्सहन्ती पुष्यन्ती नृम्णम् ॥५॥
स्वर रहित पद पाठसा। विट्। सुऽवीरा। मरुत्ऽभिः। अस्तु। सनात्। सहन्ती। पुष्यन्ती। नृम्णम् ॥५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 56; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 5
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अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
का प्रजा उत्तमेत्याह ॥
अन्वयः
या सुवीरा विट् मरुद्भिः सनात् नृम्णं पुष्यन्ती पीडां सहन्ती वर्त्तते साऽस्माकमस्तु ॥५॥
पदार्थः
(सा) (विट्) प्रजा (सुवीरा) शोभना वीरा यस्यां सा (मरुद्भिः) मनुष्यैः (अस्तु) (सनात्) सनातने (सहन्ती) सहनं कुर्वती (पुष्यन्ती) पुष्टं कारयित्री (नृम्णम्) धनम् ॥५॥
भावार्थः
सैव स्त्री वरा या ब्रह्मचर्येण समग्रा विद्या अधीत्य शूरवीराँस्तनयान् प्रसूते सहनशीला कोशिका भवति ॥५॥
हिन्दी (3)
विषय
कौन प्रजा उत्तम है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
जो (सुवीरा) सुन्दर वीरोंवाली (विट्) प्रजा (मरुद्भिः) मनुष्यों के साथ (सनात्) सनातन व्यवहार में (नृम्णम्) धन को (पुष्यन्ती) पुष्ट करवाती और पीड़ा को (सहन्ती) सहनेवाली वर्त्तमान है (सा) वह हमारे लिये (अस्तु) होवे ॥५॥
भावार्थ
वही स्त्री श्रेष्ठ है जो ब्रह्मचर्य्य से समग्र विद्याओं को पढ़ के शूरवीर पुत्रों को उत्पन्न करती है और वही सहनशील तथा कोशवाली होती है ॥५॥
विषय
जीवों के जन्म मरणादि का विज्ञान।
भावार्थ
(सा) वह (विट्) प्रजावर्ग ( मरुद्भिः ) वायुवत् बलवान् विद्वान् पुरुषों से ही ( सु-वीरा ) उत्तम वीरों वाली ( अस्तु ) हो । वह ( सनात् ) सदा (सहन्ती ) शत्रु को पराजित करती हुई और ( नृम्णं पुष्यन्ती ) धनैश्वर्य को पुष्ट, समृद्ध करती हुई रहे । इसी प्रकार स्त्री में पुत्र रूप से पति प्रवेश करता है इससे वह 'विट्' है। वह भी गृहस्थ का भार सहती हुई, धन की वृद्धि करती हुई उत्तम पुत्रों से सुपुत्रा हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ।। मरुतो देवताः ॥ छन्दः -१ आर्ची गायत्री । २, ६, ७,९ भुरिगार्ची गायत्रीं । ३, ४, ५ प्राजापत्या बृहती । ८, १० आर्च्युष्णिक् । ११ निचृदार्च्युष्णिक् १२, १३, १५, १८, १९, २१ निचृत्त्रिष्टुप् । १७, २० त्रिष्टुप् । २२, २३, २५ विराट् त्रिष्टुप् । २४ पंक्तिः । १४, १६ स्वराट् पंक्तिः ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
वीर सन्तान
पदार्थ
पदार्थ- (सा) = वह (विट्) = प्रजावर्ग (मरुद्भिः) = वायुवत् बलवान् पुरुषों से ही (सु-वीरा) = उत्तम वीरोंवाली (अस्तु) = हो। वह (सनात्) = सदा (सहन्ती) = शत्रु को पराजित करती हुई और (नृम्णं पुष्यन्ती) = धनैश्वर्य को समृद्ध करती रहे।
भावार्थ
भावार्थ- राष्ट्र में उत्तम विद्वानों के निर्देशन में वीर सन्तानें पैदा होवें जो शत्रुओं को पराजित कर राष्ट्र में ऐश्वर्य को बढ़ावें ।
मराठी (1)
भावार्थ
जी ब्रह्मचर्याने संपूर्ण विद्या शिकून शूर वीर पुत्रांना उत्पन्न करते व सहनशील असून विविध पदार्थांचा कोश बाळगते तीच स्त्री श्रेष्ठ असते. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
That nation commands the brave which maintains its stout and vibrant people by its constant values and policy of action, which observes hard discipline patiently to challenge the enemies, and which strengthens and sustains its manliness of character.
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