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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 29 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 29/ मन्त्र 9
    ऋषिः - मनुर्वैवस्वतः कश्यपो वा मारीचः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - आर्चीभुरिग्गायत्री स्वरः - षड्जः

    सदो॒ द्वा च॑क्राते उप॒मा दि॒वि स॒म्राजा॑ स॒र्पिरा॑सुती ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सदः॑ । द्वा । च॒क्रा॒ते॒ इति॑ । उ॒प॒ऽमा । दि॒वि । स॒म्ऽराजा॑ । स॒र्पिर्ऽआ॑सुती॒ इति॑ स॒र्पिःऽआ॑सुती ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सदो द्वा चक्राते उपमा दिवि सम्राजा सर्पिरासुती ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सदः । द्वा । चक्राते इति । उपऽमा । दिवि । सम्ऽराजा । सर्पिर्ऽआसुती इति सर्पिःऽआसुती ॥ ८.२९.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 29; मन्त्र » 9
    अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 36; मन्त्र » 9

    Meaning -
    And two of royal magnificence in closest proximity receive and enjoy oblations of ghrta and take their position in the regions of heavenly light. (These are Mitra and Varuna, sun and ocean, heat and cool of nature, or love and judgement, or sunlight and air in human life.)

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