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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 58 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 58/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अवत्सारः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    आ ययो॑स्त्रिं॒शतं॒ तना॑ स॒हस्रा॑णि च॒ दद्म॑हे । तर॒त्स म॒न्दी धा॑वति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । ययोः॑ । त्रिं॒शत॑म् । तना॑ । स॒हस्रा॑णि । च॒ । दद्म॑हे । तर॑त् । सः । म॒न्दी । धा॒व॒ति॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ ययोस्त्रिंशतं तना सहस्राणि च दद्महे । तरत्स मन्दी धावति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । ययोः । त्रिंशतम् । तना । सहस्राणि । च । दद्महे । तरत् । सः । मन्दी । धावति ॥ ९.५८.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 58; मन्त्र » 4
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 15; मन्त्र » 4

    Meaning -
    The divine Soma energy and power, destroyer of evil and saviour of human good, of which we get thirty virtues and a thousand other gifts, flows on saving, delighting, delightful.

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