Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 36/ मन्त्र 10
    ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः देवता - वातादयो देवताः छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    9

    शन्नो॒ वातः॑ पवता॒ शन्न॑स्तपतु॒ सूर्यः॑।शन्नः॒ कनि॑क्रदद्दे॒वः प॒र्जन्यो॑ऽअ॒भि व॑र्षतु॥१०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शम्। नः॒। वातः॑। प॒व॒ता॒म्। शम्। नः॒। त॒प॒तु॒। सूर्य्यः॑ ॥ शम्। नः॒। कनि॑क्रदत्। दे॒वः। प॒र्जन्यः॑। अ॒भि। व॒र्ष॒तु॒ ॥१० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शन्नो वातः पवताँ शन्नस्तपतु सूर्यः । शन्नः कनिक्रदद्देवः पर्जन्यो अभि वर्षतु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    शम्। नः। वातः। पवताम्। शम्। नः। तपतु। सूर्य्यः॥ शम्। नः। कनिक्रदत्। देवः। पर्जन्यः। अभि। वर्षतु॥१०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 36; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    हे परमेश्वर वा विद्वान् पुरुष! जैसे (वातः) पवन (नः) हमारे लिये (शम्) सुखकारी (पवताम्) चले (सूर्य्यः) सूर्य्य (नः) हमारे लिये (शम्) सुखकारी (तपतु) तपे (कनिक्रदत्) अत्यन्त शब्द करता हुआ (देवः) उत्तम गुणयुक्त विद्युत्रूप अग्नि (नः) हमारे लिये (शम्) कल्याणकारी हो और (पर्जन्यः) मेघ हमारे लिये (अभि, वर्षतु) सब ओर से वर्षा करे, वैसे हमको शिक्षा कीजिये॥१०॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो! जिस प्रकार से वायु, सूर्य्य, बिजुली और मेघ सबको सुखकारी हों, वैसा अनुष्ठान किया करो॥१०॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top