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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 8
    ऋषिः - विश्वामित्र ऋषिः देवता - मित्रावरुणौ देवते छन्दः - निचृद गायत्री स्वरः - षड्जः
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    आ नो॑ मित्रावरुणा घृ॒तैर्गव्यू॑तिमुक्षतम्। मध्वा॒ रजा॑सि सुक्रतू॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ। नः॒। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। घृ॒तैः। गव्यू॑तिम्। उ॒क्ष॒त॒म्। मध्वा॑। रजा॑ꣳसि। सु॒क्र॒तू॒ इति॑ सुऽक्रतू ॥८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ नो मित्रावरुणा घृतैर्गव्यूतिमुक्षतम् । मध्वा रजाँसि सुक्रतू ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आ। नः। मित्रावरुणा। घृतैः। गव्यूतिम्। उक्षतम्। मध्वा। रजाꣳसि। सुक्रतू इति सुऽक्रतू॥८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 8
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    Meaning -
    O intellectual and industrious pair of artisans, behaving like Pran and Udan, sprinkle with water our walking-path for two miles, and provide all places with sweet water.

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