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  • यजुर्वेद - अध्याय 5/ मन्त्र 5
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - विद्युद्देवता छन्दः - आर्षी उष्णिक्,भूरिक् आर्षी पङ्क्ति, स्वरः - ऋषभः, पञ्चमः
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    आप॑तये त्वा॒ परि॑पतये गृह्णामि॒ तनू॒नप्त्रे॑ शाक्व॒राय॒ शक्व॑न॒ऽओजि॑ष्ठाय। अना॑धृष्टमस्य-नाधृ॒ष्यं दे॒वाना॒मोजोऽन॑भिशस्त्यभिशस्ति॒पा॑ऽअ॑नभिशस्ते॒न्यमञ्ज॑सा स॒त्यमु॑पगेषꣳ स्वि॒ते मा॑ धाः॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आप॑तय॑ इत्याऽप॑तये। त्वा॒। परि॑पतय॒ इति॒ परि॑ऽपतये। गृ॒ह्णा॒मि॒। तनू॒नप्त्र॒ इति॒ तनू॒ऽनप्त्रे॑। शा॒क्व॒राय॑। शक्व॑ने। ओजि॑ष्ठाय। अना॑धृष्टम्। अ॒सि॒। अ॒ना॒धृ॒ष्यम्। दे॒वाना॑म्। ओजः॑। अन॑भिश॒स्तीत्यन॑भिऽशस्ति। अ॒भि॒श॒स्ति॒पा इत्य॑भिशस्ति॒ऽपाः। अ॒न॒भि॒श॒स्ते॒न्यमित्य॑नभिऽशस्ते॒न्यम्। अञ्ज॑सा। स॒त्यम्। उप॑। गे॒ष॒म्। स्वि॒त इति॑ सुऽइते। मा॒। धाः॒ ॥५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आपतये त्वा परिपतये गृह्णामि तनूनप्त्रे शाक्वराय शक्वन ओजिष्ठाय । अनाधृष्टमस्यनाधृष्यन्देवानामोजो नभिशस्त्यभिशस्तिपा अनभिशस्तेन्यमञ्जसा सत्यमुप गेषँ स्विते मा धाः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आपतय इत्याऽपतये। त्वा। परिपतय इति परिऽपतये। गृह्णामि। तनूनप्त्र इति तनूऽनप्त्रे। शाक्वराय। शक्वने। ओजिष्ठाय। अनाधृष्टम्। असि। अनाधृष्यम्। देवानाम्। ओजः। अनभिशस्तीत्यनभिऽशस्ति। अभिशस्तिपा इत्यभिशस्तिऽपाः। अनभिशस्तेन्यमित्यनभिऽशस्तेन्यम्। अञ्जसा। सत्यम्। उप। गेषम्। स्वित इति सुऽइते। मा। धाः॥५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 5; मन्त्र » 5
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    Meaning -
    O God, Thou art my Protector against violence. I take Thee as my Sovereign Lord, as the Guardian in all directions, as the Giver of sound body, as the Embodiment of strength, and the Securer of valiant soldiers. Through Gods grace, may I easily attain to truth and invincible, irresistible, inviolate and invulnerable strength of the learned. Set me O God on the path of virtue.

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