Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 5/ मन्त्र 21
    ऋषिः - औतथ्यो दीर्घतमा ऋषिः देवता - विष्णुर्देवता छन्दः - भूरिक् आर्ची पङ्क्ति, स्वरः - पञ्चमः
    5

    विष्णो॑ र॒राट॑मसि॒ विष्णोः॒ श्नप्त्रे॑ स्थो॒ विष्णोः॒ स्यूर॑सि॒ विष्णोर्ध्रु॒वोऽसि॒। वै॒ष्ण॒वम॑सि॒ विष्ण॑वे त्वा॥२१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विष्णोः॑। र॒राट॑म्। अ॒सि॒। विष्णेः॑। श्नप्त्रे॒ऽइति॒ श्नप्त्रे॑। स्थः॒। विष्णोः॑। स्यूः। अ॒सि॒। विष्णोः॑। ध्रु॒वः। अ॒सि॒। वै॒ष्ण॒वम्। अ॒सि॒। विष्ण॑वे। त्वा॒ ॥२१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विष्णो रराटमसि विष्णोः श्नप्त्रे स्थो विष्णोः स्यूरसि विष्णोर्ध्रुवोसि । वैष्णवमसि विष्णवे त्वा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विष्णोः। रराटम्। असि। विष्णेः। श्नप्त्रेऽइति श्नप्त्रे। स्थः। विष्णोः। स्यूः। असि। विष्णोः। ध्रुवः। असि। वैष्णवम्। असि। विष्णवे। त्वा॥२१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 5; मन्त्र » 21
    Acknowledgment

    Meaning -
    O World thou art created by God, O animate and inanimate objects ye are the two-fold pure . powers of God, O Air, thou art widespread through Gods strength. O soul, thou art ever immortal through Gods grace. O complete universe, thou art created by God. O man I ordain thee to worship the All-pervading God.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top