Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1008
ऋषिः - जमदग्निर्भार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
5

अ꣡सा꣢व्य꣣ꣳशु꣡र्मदा꣢꣯या꣣प्सु꣡ दक्षो꣢꣯ गिरि꣣ष्ठाः꣢ । श्ये꣣नो꣢꣫ न योनि꣣मा꣡स꣢दत् ॥१००८॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣡सा꣢꣯वि । अ꣣ꣳशुः꣢ । म꣡दा꣢꣯य । अ꣡प्सु꣢ । द꣡क्षः꣢꣯ । गि꣣रि꣢ष्ठाः । गि꣣रि । स्थाः꣢ । श्ये꣣नः꣢ । न । यो꣡नि꣢꣯म् । आ । अ꣣सदत् ॥१००८॥


स्वर रहित मन्त्र

असाव्यꣳशुर्मदायाप्सु दक्षो गिरिष्ठाः । श्येनो न योनिमासदत् ॥१००८॥


स्वर रहित पद पाठ

असावि । अꣳशुः । मदाय । अप्सु । दक्षः । गिरिष्ठाः । गिरि । स्थाः । श्येनः । न । योनिम् । आ । असदत् ॥१००८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1008
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment

पदार्थ -
प्रथम—सोमौषधि के रस के विषय में। (गिरिष्ठाः) पर्वतों पर उत्पन्न, (दक्षः) बलदायक (अंशुः) सोम ओषधि का रस (मदाय) पीने पर उत्साहवर्धन के लिए (अप्सु) जलों में (असावि) निचोड़ा गया है। (श्येनः न योनिम्) बाज पक्षी जैसे अपने आवास वृक्ष पर बैठता है, वैसे ही यह सोम ओषधि का रस (योनिम्) द्रोणकलश में (आसदत्) आकर स्थित हो गया है ॥ द्वितीय—ज्ञानरस के विषय में। (गिरिष्ठाः) वेदवाणी में स्थित, (दक्षः) आत्मबल देनेवाला (अंशुः) ज्ञानरस (मदाय) आनन्द प्राप्त कराने के लिए (अप्सु) विद्यार्थियों के कर्मों में (असावि) अभिषुत किया जाता है। (श्येनः न योनिम्) बाज पक्षी जैसे अपने आवास-वृक्ष पर बैठता है, वैसे ही यह ज्ञानरस (योनिम्) जीवात्मरूप सदन में (आसदत्) आकर स्थित होता है ॥१॥ इस मन्त्र में उपमालङ्कार तथा श्लेष है ॥१॥

भावार्थ - कर्मरहित अकेला ज्ञान नीरस और निष्फल होता है ॥१॥

इस भाष्य को एडिट करें
Top