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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1018
ऋषिः - रेभसूनू काश्यपौ
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम -
5
त्वं꣡ द्यां च꣢꣯ महिव्रत पृथि꣣वीं꣡ चाति꣢꣯ जभ्रिषे । प्र꣡ति꣢ द्रा꣣पि꣡म꣢मुञ्चथाः प꣡व꣢मान महित्व꣣ना꣢ ॥१०१८॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । द्याम् । च꣣ । महिव्रत । महि । व्रत । पृथिवी꣢म् । च꣣ । अ꣡ति꣢꣯ । ज꣣भ्रिषे । प्र꣡ति꣢꣯ । द्रा꣣पि꣢म् । अ꣣मुञ्चथाः । प꣡व꣢꣯मान । म꣣हित्वना꣢ ॥१०१८॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं द्यां च महिव्रत पृथिवीं चाति जभ्रिषे । प्रति द्रापिममुञ्चथाः पवमान महित्वना ॥१०१८॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वम् । द्याम् । च । महिव्रत । महि । व्रत । पृथिवीम् । च । अति । जभ्रिषे । प्रति । द्रापिम् । अमुञ्चथाः । पवमान । महित्वना ॥१०१८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1018
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 6; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 6; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
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विषय - अगले मन्त्र में पुनः वही विषय है।
पदार्थ -
हे (महिव्रत) महान् कर्मों के कर्ता सोम अर्थात् जगत्स्रष्टा परमात्मन् ! (त्वम्) आप (द्यां च) द्यौ लोक को (पृथिवीं च) और भूलोक को भी (अति) लाँघकर (जभ्रिषे) सबको धारण किये हुए हो। हे (पवमान) सर्वान्तर्यामिन् आपने (महित्वना) अपनी महिमा से (द्रापिम्) रक्षा-कवच को (प्रति अमुञ्चथाः) धारण किया हुआ है, अर्थात् आपकी महिमा ही आपका रक्षा-कवच है, क्योंकि अलौकिक आपको कवच आदि भौतिक साधनों की अपेक्षा नहीं होती। अथवा, (द्रापिम्) निद्रा को (प्रति अमुञ्चथाः) छोड़ा हुआ है, अर्थात् सदैव जागरूक होने से आप निद्रा-रहित हो ॥३॥
भावार्थ - न केवल द्युलोक तथा भूलोक को, किन्तु उनसे परे भी जो कुछ है, उस सबको भी जगदीश्वर ही धारण करता है। वह भौतिक कवच के बिना भी रक्षित रहता है और नींद के बिना भी विश्राम को प्राप्त रहता है ॥३॥
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