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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1054
ऋषिः - हिरण्यस्तूप आङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
अ꣣भ्य꣢३र्षा꣡न꣢पच्युतो꣣ वा꣡जि꣢न्त्स꣣म꣡त्सु꣢ सा꣣स꣢हिः । अ꣡था꣢ नो꣣ व꣡स्य꣢सस्कृधि ॥१०५४॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣भि꣢ । अ꣣र्ष । अ꣡न꣢꣯पच्युतः । अ꣢न् । अ꣣पच्युतः । वा꣡जि꣢꣯न् । स꣣म꣡त्सु꣢ । स꣣ । म꣡त्सु꣢꣯ । सा꣣सहिः꣢ । अ꣡थ꣢꣯ । नः꣣ । व꣡स्य꣢꣯सः । कृ꣣धि ॥१०५४॥
स्वर रहित मन्त्र
अभ्य३र्षानपच्युतो वाजिन्त्समत्सु सासहिः । अथा नो वस्यसस्कृधि ॥१०५४॥
स्वर रहित पद पाठ
अभि । अर्ष । अनपच्युतः । अन् । अपच्युतः । वाजिन् । समत्सु । स । मत्सु । सासहिः । अथ । नः । वस्यसः । कृधि ॥१०५४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1054
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 8
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 8
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 8
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 8
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विषय - अगले मन्त्र में पुनः वही विषय है।
पदार्थ -
हे (वाजिन्) बलवान् सोम अर्थात् वीर परमात्मन् वा राजन् ! (अनपच्युतः) विचलित न होनेवाले, (समत्सु सासहिः) देवासुरसंग्रामों में शत्रुओं का पराजय करनेवाले आप (अभ्यर्ष) क्रियाशील होवो। (अथ) और इस प्रकार (नः) हमें (वस्यसः) अतिशय ऐश्वर्यवान् (कृधि) करो ॥८॥
भावार्थ - परमात्मा की उपासना करके और राजा को उद्बोधन देकर सब आन्तरिक और बाह्य शत्रुओं का उच्छेद करके लोग विजयी, ऐश्वर्यवान् तथा सुखी होवें ॥८॥
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