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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1106
ऋषिः - कुत्स आङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम -
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म꣢ही꣣मे꣡ अ꣢स्य꣣ वृ꣢ष꣣ ना꣡म꣢ शू꣣षे꣡ माꣳश्च꣢꣯त्वे वा꣣ पृ꣡श꣢ने वा꣣ व꣡ध꣢त्रे । अ꣡स्वा꣢पयन्नि꣣गु꣡तः꣢ स्ने꣣ह꣢य꣣च्चा꣢पा꣣मि꣢त्रा꣣ꣳ अ꣢पा꣣चि꣡तो꣢ अचे꣣तः꣢ ॥११०६॥

स्वर सहित पद पाठ

म꣡ही꣢꣯ । इ꣣मे꣡इति꣢ । अ꣣स्य । वृ꣡ष꣢꣯ । ना꣡म꣢꣯ । शू꣣षे꣡इति꣢ । मा꣡ꣳश्च꣢꣯त्वे । वा꣣ । पृ꣡श꣢꣯ने । वा꣣ । व꣡ध꣢꣯त्रे꣣इ꣡ति꣢ । अ꣡स्वा꣢꣯पयत् । नि꣣गु꣡तः꣢ । नि꣣ । गु꣡तः꣢꣯ । स्ने꣣ह꣡य꣢त् । च꣣ । अ꣡प꣢꣯ । अ꣣मि꣡त्रा꣢न् । अ꣣ । मि꣡त्रा꣢꣯न् । अ꣡प꣢꣯ । अ꣣चि꣡तः꣢ । अ꣣ । चि꣡तः꣢꣯ । अ꣣च । इतः꣢ ॥११०६॥


स्वर रहित मन्त्र

महीमे अस्य वृष नाम शूषे माꣳश्चत्वे वा पृशने वा वधत्रे । अस्वापयन्निगुतः स्नेहयच्चापामित्राꣳ अपाचितो अचेतः ॥११०६॥


स्वर रहित पद पाठ

मही । इमेइति । अस्य । वृष । नाम । शूषेइति । माꣳश्चत्वे । वा । पृशने । वा । वधत्रेइति । अस्वापयत् । निगुतः । नि । गुतः । स्नेहयत् । च । अप । अमित्रान् । अ । मित्रान् । अप । अचितः । अ । चितः । अच । इतः ॥११०६॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1106
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 21; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 6; सूक्त » 5; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(अस्य) इस सोम अर्थात् वीररस के भण्डार राजा की (इमे) ये (वृष नाम) वर्षक गुणवाली, (शूषे)बलवान् (मही) विशाल भुजाएँ हैं, जो (मांश्चत्वे वा) घोड़ों से होनेवाले संग्राम में (पृशने वा) अथवा परस्पर स्पर्श जिसमें होता है, ऐसे मल्लयुद्ध में (वधत्रे) शत्रुओं का वध करनेवाली हैं। वह वीर राजा (निगुतः) किले, खाई आदि में छिपे हुए शत्रुओं को (अस्वापयत्) सुला देता है, अर्थात् धराशायी कर देता है, (स्नेहयत् च) और मित्रों पर स्नेह करता है। आगे प्रत्यक्षरूप से वर्णन है—हे सोम, शान्तिप्रिय प्रजाध्यक्ष ! आप (इतः) इस राष्ट्र से (अमित्रान्) द्रोहकारी रिपुओं को (अप अच) दूर कर दो, (अचितः) अविवेकी, अधार्मिक नास्तिकों को (अप अच) दूर कर दो। इस प्रकार राष्ट्र में परमेश्वर के प्रचार के लिए और वेदप्रचार के लिए कटिबद्ध होवो ॥३॥

भावार्थ - सभी वीर राष्ट्रवासी शत्रुओं को नष्ट करनेवाले तथा परमात्मा की पूजा करनेवाले तभी होते हैं, जब राष्ट्र का अध्यक्ष उसमें रुचि ले ॥३॥ इस खण्ड में गुरु-शिष्य, उपास्य-उपासक और आस्तिक राजा के विषयों का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति है ॥ सप्तम अध्याय में षष्ठ खण्ड समाप्त ॥

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