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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1107
ऋषिः - बन्धुः सुबन्धुः श्रुतबन्धुर्विप्रबन्धुश्च क्रमेण गौपायना लौपायना वा
देवता - अग्निः
छन्दः - द्विपदा विराट्
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
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अ꣢ग्ने꣣ त्वं꣢ नो꣣ अ꣡न्त꣢म उ꣣त꣢ त्रा꣣ता꣢ शि꣣वो꣡ भु꣢वो वरू꣣꣬थ्यः꣢꣯ ॥११०७॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡ग्ने꣢꣯ । त्वम् । नः꣣ । अ꣡न्त꣢꣯मः । उ꣣त꣢ । त्रा꣣ता꣢ । शि꣡वः꣢ । भु꣣वः । वरू꣢थ्यः ॥११०७॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्ने त्वं नो अन्तम उत त्राता शिवो भुवो वरूथ्यः ॥११०७॥
स्वर रहित पद पाठ
अग्ने । त्वम् । नः । अन्तमः । उत । त्राता । शिवः । भुवः । वरूथ्यः ॥११०७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1107
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 22; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 22; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा की पूर्वार्चिक में ४४८ क्रमाङ्क पर परमात्मा और राजा के विषय में व्याख्या की जा चुकी है। यहाँ परमात्मा, राजा और आचार्य तीनों का विषय है।
पदार्थ -
हे (अग्ने) अग्रनायक परमात्मन्, राजन् वा विद्वन् आचार्य ! आप (नः) हमारे (अन्तमः) निकटतम (उत) और (त्राता) अपराधों से रक्षा करनेवा्ले, तथा (शिवः) मङ्गलकारी, (वरूथ्यः) और वरणीय (भुवः) होओ ॥१॥
भावार्थ - परमात्मा, राजा और आचार्य का संरक्षण पाकर लोग दोषों से मुक्त, निरपराध, निश्छल, निष्पाप,विद्वान्, ब्रह्मज्ञ और सदाचारी हो जाते हैं ॥१॥
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