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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1108
ऋषिः - बन्धुः सुबन्धुः श्रुतबन्धुर्विप्रबन्धुश्च क्रमेण गौपायना लौपायना वा देवता - अग्निः छन्दः - द्विपदा विराट् स्वरः - पञ्चमः काण्ड नाम -
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व꣡सु꣢र꣣ग्नि꣡र्वसु꣢꣯श्रवा꣣ अ꣡च्छा꣢ नक्षि द्यु꣣म꣡त्त꣢मो र꣣यिं꣡ दाः꣢ ॥११०८॥

स्वर सहित पद पाठ

व꣡सुः꣢꣯ । अ꣣ग्निः꣢ । व꣡सु꣢꣯श्रवाः । व꣡सु꣢꣯ । श्र꣣वाः । अ꣡च्छ꣢꣯ । न꣣क्षि । द्युम꣡त्त꣢मः । र꣣यि꣢म् । दाः꣣ ॥११०८॥


स्वर रहित मन्त्र

वसुरग्निर्वसुश्रवा अच्छा नक्षि द्युमत्तमो रयिं दाः ॥११०८॥


स्वर रहित पद पाठ

वसुः । अग्निः । वसुश्रवाः । वसु । श्रवाः । अच्छ । नक्षि । द्युमत्तमः । रयिम् । दाः ॥११०८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1108
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 22; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(अग्निः) अग्रनायक परमात्मा, राजा वा विद्वान् आचार्य (वसुः) सद्गुणों का निवासक और (वसुश्रवाः) विद्यादि धनों से कीर्तिमान् है। हे परमात्मन् राजन् वा आचार्य ! आप (अच्छ) हमारे अभिमुख (नक्षि) प्राप्त होओ। (द्युमत्तमः) अत्यधिक तेजस्वी आप (रयिम्) विविध दिव्य और भौतिक धन (दाः) दो ॥२॥

भावार्थ - परमात्मा, राजा और आचार्य के गुण-कर्मों को देखकर उनसे लोगों को लाभ प्राप्त करना योग्य है ॥२॥

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