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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1231
ऋषिः - देवातिथिः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - बार्हतः प्रगाथः (विषमा बृहती, समा सतोबृहती)
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम -
4
य꣡दि꣢न्द्र꣣ प्रा꣢꣫गपा꣣गु꣢दङ्न्य꣣꣬ग्वा꣢꣯ हू꣣य꣢से꣣ नृ꣡भिः꣢ । सि꣡मा꣢ पु꣣रू꣡ नृषू꣢꣯तो अ꣣स्या꣢न꣣वे꣡ऽसि꣢ प्रशर्ध तु꣣र्व꣡शे꣢ ॥१२३१॥
स्वर सहित पद पाठय꣢त् । इ꣣न्द्र । प्रा꣢क् । अ꣡पा꣢꣯क् । अ꣡प꣢꣯ । अ꣣क् । उ꣡द꣢꣯क् । उत् । अ꣣क् । न्य꣡क्꣢ । नि । अ꣣क् । वा । हूय꣡से꣢ । नृ꣡भिः꣢꣯ । सि꣡म꣢꣯ । पु꣣रु꣢ । नृ꣡षू꣢꣯तः । नृ । सू꣣तः । असि । आ꣡न꣢꣯वे । अ꣡सि꣢꣯ । प्र꣢शर्ध । प्र । शर्ध । तु꣡र्व꣢शे ॥१२३१॥
स्वर रहित मन्त्र
यदिन्द्र प्रागपागुदङ्न्यग्वा हूयसे नृभिः । सिमा पुरू नृषूतो अस्यानवेऽसि प्रशर्ध तुर्वशे ॥१२३१॥
स्वर रहित पद पाठ
यत् । इन्द्र । प्राक् । अपाक् । अप । अक् । उदक् । उत् । अक् । न्यक् । नि । अक् । वा । हूयसे । नृभिः । सिम । पुरु । नृषूतः । नृ । सूतः । असि । आनवे । असि । प्रशर्ध । प्र । शर्ध । तुर्वशे ॥१२३१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1231
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 7; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 7; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में २७९ क्रमाङ्क पर परमात्मा के विषय में की जा चुकी है। यहाँ परमात्मा वा राजा दोनों का विषय कहा जा रहा है।
पदार्थ -
(यत्) क्योंकि, हे (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् शत्रुविदारक परमात्मन् वा राजन् ! आप (प्राक्) पूर्व दिशा में, (अपाक्) पश्चिम दिशा में, (उदक्) उत्तर दिशा में, (न्यक् वा) और दक्षिण दिशा में (नृभिः) पुरुषार्थी जनों से (हूयसे) भक्ति-प्रदान द्वारा वा करादि-प्रदान द्वारा सत्कार किये जाते हो, इसलिए (नृषूतः) उपासक जनों से वा प्रजाजनों से प्रेरित आप (सिमा) सर्वत्र (पुरु) बहुत अधिक (आनवे) मानव-समाज में (असि) उपकारक होते हो। हे (प्रशर्ध) प्रकृष्टरूप से शत्रुओं का धर्षण करनेवाले परमात्मन् वा राजन् ! आप (तुर्वशे) हिंसकों को वश में करनेवाले वीर मनुष्य के (असि) सहायक होते हो ॥१॥
भावार्थ - जैसे जगदीश्वर सब धार्मिक जनों का सहायक और रक्षक होता है, वैसे ही राजा का यह कर्तव्य है कि वह सब राज्याधिकारियों का तथा प्रजाजनों का सहायक और रक्षक होवे ॥१॥ सायणाचार्य ने इस मन्त्र की व्याख्या में लिखा है कि अनु नाम का एक राजा था, जिसका राजर्षि पुत्र आनव है और तुर्वश भी एक राजा का नाम है। यह उसकी व्याख्या काल्पनिक होने से तथा योगार्थशैली के विरुद्ध होने के कारण सङ्गत नहीं है ॥
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