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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1237
ऋषिः - निध्रुविः काश्यपः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
6
अ꣣प꣡घ्नन्प꣢वसे꣣ मृ꣡धः꣢ क्रतुवित्सोम मत्सरः । नुदस्वादेवयुं जनम् ॥१२३७॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣पघ्नन् । अ꣣प । घ्न꣢न् । प꣣वसे । मृ꣡धः꣢꣯ । क्र꣣तुवि꣢त् । क्र꣣तु । वि꣢त् । सो꣣म । मत्सरः꣢ । नु꣣द꣡स्व꣢ । अ꣡दे꣢꣯वयुम् । अ । दे꣣वयुम् । ज꣡न꣢꣯म् ॥१२३७॥
स्वर रहित मन्त्र
अपघ्नन्पवसे मृधः क्रतुवित्सोम मत्सरः । नुदस्वादेवयुं जनम् ॥१२३७॥
स्वर रहित पद पाठ
अपघ्नन् । अप । घ्नन् । पवसे । मृधः । क्रतुवित् । क्रतु । वित् । सोम । मत्सरः । नुदस्व । अदेवयुम् । अ । देवयुम् । जनम् ॥१२३७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1237
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 8; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 8; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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विषय - तृतीय ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में ४९२ क्रमाङ्क पर परमात्मा के विषय में की जा चुकी है। यहाँ एक साथ परमात्मा और आचार्य दोनों का विषय वर्णित करते हैं।
पदार्थ -
हे (सोम) आनन्दरस के भण्डार परमात्मन् वा विद्यारस के भण्डार आचार्य ! (क्रतुवित्) विज्ञानों और कर्मों को प्राप्त करानेवाले, (मत्सरः) आनन्ददाता आप (मृधः) हिंसावृत्तियों को (अपघ्नन्) विनष्ट करते हुए (पवसे) मनुष्यों वा विद्यार्थियों के अन्तःकरण को पवित्र करते हो। आप (अदेवयुम्) दिव्यगुणों को प्राप्त न करना चाहनेवाले (जनम्) मनुष्य को वा विद्यार्थी को (नुदस्व) उनकी प्राप्ति के लिए प्रेरित करो ॥३॥
भावार्थ - जैसे परमेश्वर वेद द्वारा दिव्य गुणों की प्राप्ति का सन्देश देकर योगाभ्यासियों को ब्रह्मानन्द प्रदान करके कृतार्थ करता है, वैसे ही आचार्य छात्रों को क्रियात्मक ज्ञानसहित आध्यात्मिक एवं भौतिक विविध विद्याएँ सिखाकर, उनमें दिव्य गुण उत्पन्न करके उन्हें सुयोग्य बनाए ॥३॥
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