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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1329
ऋषिः - अम्बरीषो वार्षागिर ऋजिश्वा भारद्वाजश्च
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम -
5
प꣢रि꣣ त्य꣡ꣳ ह꣢र्य꣣त꣡ꣳ हरिं꣢꣯ ब꣣भ्रुं꣡ पु꣢नन्ति꣣ वा꣡रे꣢ण । यो꣢ दे꣣वा꣢꣫न्विश्वा꣣ꣳ इ꣢꣫त्परि꣣ म꣡दे꣢न स꣣ह꣡ गच्छ꣢꣯ति ॥१३२९॥
स्वर सहित पद पाठप꣡रि꣢꣯ । त्यम् । ह꣣र्यत꣢म् । ह꣡रि꣢꣯म् । ब꣣भ्रु꣢म् । पु꣣नन्ति । वा꣡रे꣢꣯ण । यः । दे꣣वा꣢न् । वि꣡श्वा꣢꣯न् । इत् । प꣡रि꣢꣯ । म꣡दे꣢꣯न । स꣣ह꣢ । ग꣡च्छ꣢꣯ति ॥१३२९॥
स्वर रहित मन्त्र
परि त्यꣳ हर्यतꣳ हरिं बभ्रुं पुनन्ति वारेण । यो देवान्विश्वाꣳ इत्परि मदेन सह गच्छति ॥१३२९॥
स्वर रहित पद पाठ
परि । त्यम् । हर्यतम् । हरिम् । बभ्रुम् । पुनन्ति । वारेण । यः । देवान् । विश्वान् । इत् । परि । मदेन । सह । गच्छति ॥१३२९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1329
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 18; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 18; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में ५५२ क्रमाङ्क पर जीवात्मा की शुद्धि के विषय में की गयी थी। यहाँ गुरु-शिष्य का विषय कहते हैं।
पदार्थ -
(हर्यतम्) प्रिय, (हरिम्) विद्या ग्रहण करने के शीलवाले, (बभ्रुम्) अज्ञान आदि दोषों से धूसर आत्मावाले (त्यम्) उस विद्यार्थी को, गुरुजन (वारेण) दोष-निवारक यम, नियम आदि से (परि पुनन्ति) परिशुद्ध करते हैं, (यः) जो विद्यार्थी (मदेन सह) उत्साह के साथ (विश्वान् इत् देवान्) सभी विद्वान् गुरुजनों के पास (परिगच्छति) पहुँचता है ॥१॥
भावार्थ - गुरुओं का यह कर्तव्य है कि वे प्यारे विद्यार्थियों का दोषों को निवारण करके उन्हें विद्वान् और प्रशस्त चरित्रवाला बनाएँ ॥१॥
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