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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1328
ऋषिः - मनुराप्सवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम -
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आ꣡ नः꣢ सुतास इन्दवः पुना꣣ना꣡ धा꣢वता र꣣यि꣢म् । वृ꣣ष्टि꣡द्या꣢वो रीत्यापः स्व꣣र्वि꣡दः꣢ ॥१३२८॥

स्वर सहित पद पाठ

आ꣢ । नः꣣ । सुतासः । इन्दवः । पुनानाः꣢ । धा꣣वत । रयि꣢म् । वृ꣣ष्टि꣡द्या꣢वः । वृ꣣ष्टि꣢ । द्या꣣वः । रीत्यापः । रीति । आपः । स्वर्वि꣡दः꣢ । स्वः꣣ । वि꣡दः꣢꣯ ॥१३२८॥


स्वर रहित मन्त्र

आ नः सुतास इन्दवः पुनाना धावता रयिम् । वृष्टिद्यावो रीत्यापः स्वर्विदः ॥१३२८॥


स्वर रहित पद पाठ

आ । नः । सुतासः । इन्दवः । पुनानाः । धावत । रयिम् । वृष्टिद्यावः । वृष्टि । द्यावः । रीत्यापः । रीति । आपः । स्वर्विदः । स्वः । विदः ॥१३२८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1328
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 17; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 11; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
हे (सुतासः) अभिषुत किये हुए (इन्दवः) ब्रह्मानन्द-रसो ! (पुनानाः) पवित्र करते हुए तुम (नः) हमें (रयिम्) सद्गुणों का ऐश्वर्य (आ धावत) प्राप्त कराओ। हे (रीत्यापः) वेग से प्रवाहित होनेवाले ब्रह्मानन्दो ! तुम (वृष्टिद्यावः) मस्तिष्क से विज्ञान की वृष्टि करनेवाले और (स्वर्विदः) दिव्य प्रकाश प्राप्त करानेवाले हो ॥३॥

भावार्थ - ब्रह्मानन्द द्वारा अन्तरात्मा के प्रकाशित और पवित्र हो जाने पर मस्तिष्क-भूमि भी उपजाऊ होकर विविध ज्ञान-विज्ञान आदि को उत्पन्न करती हुई योगी को उपकृत करती है ॥३॥

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