Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1327
ऋषिः - मनुराप्सवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम -
6

त꣡व꣢ द्र꣣प्सा꣡ उ꣢द꣣प्रु꣢त꣣ इ꣢न्द्रं꣣ म꣡दा꣢य वावृधुः । त्वां꣢ दे꣣वा꣡सो꣢ अ꣣मृ꣡ता꣢य꣣ कं꣡ प꣢पुः ॥१३२७॥

स्वर सहित पद पाठ

त꣡व꣢꣯ । द्र꣣प्साः꣢ । उ꣣दप्रु꣡तः꣢ । उ꣣द । प्रु꣡तः꣢꣯ । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । म꣡दा꣢꣯य । वा꣣वृधुः । त्वा꣢म् । दे꣣वा꣡सः꣢ । अ꣣मृ꣡ता꣢य । अ꣣ । मृ꣡ता꣢꣯य । कम् । प꣣पुः ॥१३२७॥


स्वर रहित मन्त्र

तव द्रप्सा उदप्रुत इन्द्रं मदाय वावृधुः । त्वां देवासो अमृताय कं पपुः ॥१३२७॥


स्वर रहित पद पाठ

तव । द्रप्साः । उदप्रुतः । उद । प्रुतः । इन्द्रम् । मदाय । वावृधुः । त्वाम् । देवासः । अमृताय । अ । मृताय । कम् । पपुः ॥१३२७॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1327
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 17; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 11; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
Acknowledgment

पदार्थ -
हे सोम ! हे रसागार परमेश्वर ! (तव) आपके (द्रप्साः) वेग से बहनेवाले आनन्द-रस (उदप्रुतः) अन्तःकरण में तरङ्गें उठानेवाले होते हैं। वे (इन्द्रम्) जीवात्मा को (मदाय) तृप्तिलाभ के लिए (वावृधुः) बढ़ाते हैं। (देवासः) विद्वान् लोग (कम्) सुन्दर, सर्वोपरि विराजमान, सुखस्वरूप (त्वाम्) आपको (अमृताय) अमर पद की प्राप्ति के लिए (पपुः) पान करते हैं ॥२॥

भावार्थ - परमेश्वररूप हिमालय से निकली हुई आनन्द-रस की नदी में ही स्नान करके योगी लोग मोक्ष-पद के अधिकारी होते हैं, भौतिक गङ्गा, यमुना, सरस्वती आदि नदियों में स्नान करके नहीं ॥२॥

इस भाष्य को एडिट करें
Top