Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1379
ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
6

उ꣣पप्रय꣡न्तो꣢ अध्व꣣रं꣡ मन्त्रं꣢꣯ वोचेमा꣣ग्न꣡ये꣢ । आ꣣रे꣢ अ꣣स्मे꣡ च꣢ शृण्व꣣ते꣢ ॥१३७९॥

स्वर सहित पद पाठ

उ꣣पप्रय꣡न्तः꣢ । उ꣣प । प्रय꣡न्तः꣢ । अ꣣ध्वर꣢म् । म꣡न्त्र꣢꣯म् । वो꣣चेम । अग्न꣡ये꣢ । आ꣣रे꣢ । अ꣢स्मे꣡इति꣢ । च꣣ । शृण्वते꣢ ॥१३७९॥


स्वर रहित मन्त्र

उपप्रयन्तो अध्वरं मन्त्रं वोचेमाग्नये । आरे अस्मे च शृण्वते ॥१३७९॥


स्वर रहित पद पाठ

उपप्रयन्तः । उप । प्रयन्तः । अध्वरम् । मन्त्रम् । वोचेम । अग्नये । आरे । अस्मेइति । च । शृण्वते ॥१३७९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1379
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment

पदार्थ -
(अध्वरम्) हिंसारहित ब्रह्मयज्ञ वा देवयज्ञ में (उपप्रयन्तः) जाते हुए हम (आरे) दूर (अस्मे च) और हमारे समीप (शृण्वते) प्रार्थना-वचनों को सुननेवाले (अग्नये) अग्रनायक जगदीश्वर के लिए (मन्त्रम्) वेदमन्त्र को (वोचेम) उच्चारण करें ॥१॥

भावार्थ - ब्रह्मयज्ञ वा देवयज्ञ करते हुए मनुष्य मन्त्रोच्चारणपूर्वक परमेश्वर के गुण-कर्म-स्वभावों का ध्यान किया करें और उससे शिक्षा-ग्रहण किया करें ॥१॥

इस भाष्य को एडिट करें
Top