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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1380
ऋषिः - गोतमो राहूगणः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
6
यः꣡ स्नीहि꣢꣯तीषु पू꣣र्व्यः꣡ सं꣢जग्मा꣣ना꣡सु꣢ कृ꣣ष्टि꣡षु꣢ । अ꣡र꣢क्षद्दा꣣शु꣢षे꣣ ग꣡य꣢म् ॥१३८०॥
स्वर सहित पद पाठयः । स्नीहितीषु । पूर्व्यः । सञ्जग्मानासु । सम् । जग्मानासु । कृष्टिषु । अरक्षत् । दाशुषे । गयम् ॥१३८०॥
स्वर रहित मन्त्र
यः स्नीहितीषु पूर्व्यः संजग्मानासु कृष्टिषु । अरक्षद्दाशुषे गयम् ॥१३८०॥
स्वर रहित पद पाठ
यः । स्नीहितीषु । पूर्व्यः । सञ्जग्मानासु । सम् । जग्मानासु । कृष्टिषु । अरक्षत् । दाशुषे । गयम् ॥१३८०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1380
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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विषय - आगे पुनः उसी विषय का कथन है।
पदार्थ -
(पूर्व्यः) पूर्वजों से साक्षात्कार किया गया (यः) जो अग्रनायक परमेश्वर (स्नीहितीषु) वध करनेवाली (कृष्टिषु) शत्रु-प्रजाओं के (संजग्मानासु) मुठभेड़ करने पर (दाशुषे) आत्मसमर्पण करनेवाले उपासक के लिए (गयम्) आश्रय को (अरक्षत्) सुरक्षित करता है, उस [(अग्नये) अग्रनायक परमेश्वर के लिए, हम (मन्त्रं वोचेम) वेदमन्त्रों का उच्चारण करें]४ ॥२॥
भावार्थ - परमेश्वरोपासक के मार्ग से सब विघ्न नष्ट हो जाते हैं, परमेश्वर उसे अपना सुरक्षित आश्रय और दिव्य सम्पदाएँ प्रदान करता है ॥२॥
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