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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1381
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
स꣢ नो꣣ वे꣡दो꣢ अ꣣मा꣡त्य꣢म꣣ग्नी꣡ र꣢क्षतु꣣ श꣡न्त꣢मः । उ꣣ता꣢꣫स्मान्पा꣣त्व꣡ꣳह꣢सः ॥१३८१॥
स्वर सहित पद पाठसः । नः꣣ । वे꣡दः꣢꣯ । अ꣣मा꣡त्य꣢म् । अ꣣ग्निः꣢ । र꣣क्षतु । श꣡न्त꣢꣯मः । उ꣣त꣢ । अ꣣स्मा꣢न् । पा꣣तु । अ꣡ꣳह꣢꣯सः ॥१३८१॥
स्वर रहित मन्त्र
स नो वेदो अमात्यमग्नी रक्षतु शन्तमः । उतास्मान्पात्वꣳहसः ॥१३८१॥
स्वर रहित पद पाठ
सः । नः । वेदः । अमात्यम् । अग्निः । रक्षतु । शन्तमः । उत । अस्मान् । पातु । अꣳहसः ॥१३८१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1381
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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विषय - अगले मन्त्र में उपासक अपनी आकाङ्क्षा प्रकट कर रहा है।
पदार्थ -
(सः) वह (शन्तमः) अतिशय शान्तिदायक (अग्निः) अग्रनायक परमेश्वर (नः) हमारे (अमात्यम्) साथ रहनेवाले (वेदः) ज्ञान की वा दिव्य धन की (रक्षतु) रक्षा करे (उत) और (अहंसः) पाप से (नः) हमें (पातु) बचाये ॥३॥
भावार्थ - परमात्मा में विश्वास से दिव्य गुण रक्षित होते हैं और पाप नष्ट हो जाते हैं ॥३॥
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