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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1382
ऋषिः - गोतमो राहूगणः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
उ꣣त꣡ ब्रु꣢वन्तु ज꣣न्त꣢व꣣ उ꣢द꣣ग्नि꣡र्वृ꣢त्र꣣हा꣡ज꣢नि । ध꣣नञ्जयो꣡ रणे꣢꣯रणे ॥१३८२॥
स्वर सहित पद पाठउ꣣त꣢ । ब्रु꣣वन्तु । जन्त꣡वः꣢ । उत् । अ꣣ग्निः꣢ । वृ꣣त्र꣢हा । वृ꣣त्र । हा꣢ । अ꣣जनि । धनञ्जयः꣢ । ध꣣नम् । जयः꣢ । र꣡णे꣢꣯रणे । र꣡णे꣢꣯ । र꣢णे ॥१३८२॥
स्वर रहित मन्त्र
उत ब्रुवन्तु जन्तव उदग्निर्वृत्रहाजनि । धनञ्जयो रणेरणे ॥१३८२॥
स्वर रहित पद पाठ
उत । ब्रुवन्तु । जन्तवः । उत् । अग्निः । वृत्रहा । वृत्र । हा । अजनि । धनञ्जयः । धनम् । जयः । रणेरणे । रणे । रणे ॥१३८२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1382
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
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विषय - अगले मन्त्र में उपासक क्या कहें, यह वर्णन है।
पदार्थ -
(उत) और (जन्तवः) द्वितीय जन्म ग्रहण किये हुए द्विज उपासक (ब्रुवन्तु) हर्ष के साथ कहें कि यह (वृत्रहा) विघ्नविनाशक (अग्निः) अग्रनायक परमेश्वर (उद् अजनि) हमारे हृदय में प्रादुभूर्त हो गया है, जो (रणे-रणे) प्रत्येक देवासुरसङ्ग्राम में (धनञ्जयः) दिव्य धन प्राप्त करानेवाला है ॥४॥
भावार्थ - आन्तरिक और बाह्य देवासुरसङ्ग्राम में परमेश्वर-विश्वासियों की विजय होती है और विजय से उन्हें दिव्य तथा भौतिक धन प्राप्त होते हैं ॥४॥ इस खण्ड में परमेश्वरोपासना का विषय वर्णित होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिए ॥ बारहवें अध्याय में प्रथम खण्ड समाप्त ॥
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