Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1383
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
अ꣡ग्ने꣢ यु꣣ङ्क्ष्वा꣡ हि ये तवाश्वा꣢꣯सो देव सा꣣ध꣡वः꣢ । अ꣢रं꣣ व꣡ह꣢न्त्या꣣श꣡वः꣢ ॥१३८३॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡ग्ने꣢꣯ । यु꣣ङ्क्ष्व꣢ । हि । ये । त꣡व꣢꣯ । अ꣡श्वा꣢꣯सः । दे꣣व । साध꣡वः꣢ । अ꣡र꣢꣯म् । व꣡ह꣢꣯न्ति । आ꣣श꣡वः꣢ ॥१३८३॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्ने युङ्क्ष्वा हि ये तवाश्वासो देव साधवः । अरं वहन्त्याशवः ॥१३८३॥
स्वर रहित पद पाठ
अग्ने । युङ्क्ष्व । हि । ये । तव । अश्वासः । देव । साधवः । अरम् । वहन्ति । आशवः ॥१३८३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1383
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
विषय - प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में २५ क्रमाङ्क पर परमात्मा को सम्बोधित की गयी है। यहाँ अपने अन्तरात्मा को सम्बोधन है।
पदार्थ -
हे (देव) ज्ञान से प्रकाशमान, (अग्ने) देह के अधिष्ठाता मेरे अन्तरात्मन् ! (ये तव) जो तुम्हारे (साधवः) भले (आशवः) शीघ्रगामी (अश्वासः) मन, बुद्धि, प्राण, इन्द्रिय रूप घोड़े (अरम्) पर्याप्तरूप से (वहन्ति) देह-रथ को चलाते हैं, उन्हें (युङ्क्ष्व हि) कार्य में तत्पर करो ॥१॥
भावार्थ - मनुष्य का आत्मा यदि सावधान नहीं है, तो उसके मन, इन्द्रिय आदि घोड़े कुमार्गगामी हो जाते हैं ॥१॥
इस भाष्य को एडिट करें