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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1387
ऋषिः - प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
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आ꣢ जा꣣मि꣡रत्के꣢꣯ अव्यत भु꣣जे꣢꣫ न पु꣣त्र꣢ ओ꣣꣬ण्योः꣢꣯ । स꣡र꣢ज्जा꣣रो꣡ न योष꣢꣯णां व꣣रो꣢ न योनि꣢꣯मा꣣स꣡द꣢म् ॥१३८७॥

स्वर सहित पद पाठ

आ꣢ । जा꣣मिः꣢ । अ꣡त्के꣢꣯ । अ꣣व्यत । भुजे꣢ । न । पु꣣त्रः꣢ । पु꣣त् । त्रः꣢ । ओ꣣ण्योः꣣꣬ । स꣡र꣢꣯त् । जा꣣रः꣢ । न । यो꣡ष꣢꣯णाम् । व꣣रः꣢ । न । यो꣡नि꣢꣯म् । आ꣣स꣡द꣢म् । आ꣣ । स꣡द꣢꣯म् ॥१३८७॥


स्वर रहित मन्त्र

आ जामिरत्के अव्यत भुजे न पुत्र ओण्योः । सरज्जारो न योषणां वरो न योनिमासदम् ॥१३८७॥


स्वर रहित पद पाठ

आ । जामिः । अत्के । अव्यत । भुजे । न । पुत्रः । पुत् । त्रः । ओण्योः । सरत् । जारः । न । योषणाम् । वरः । न । योनिम् । आसदम् । आ । सदम् ॥१३८७॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1387
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(जामिः) हमारा बन्धु परमेश्वर, हमारे द्वारा (अत्के) अन्तरात्मा में (अव्यत) लाया जा रहा है, (न) जैसे (पुत्रः) पुत्र (ओण्योः) माता-पिता की (भुजे) भुजा में लाया जाता है। वह (सरत्) हमारी ओर आ रहा है, (जारः न) जैसे सूर्य (योषणाम्) रात्रि के प्रति (सरत्) आता है और (वरः न) जैसे वर, कन्या से विवाह करके (योनिम्) घर में (आसदम्) रहने के लिए (सरत्) आता है ॥२॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥२॥

भावार्थ - पुत्र के समान, पत्नी के समान और घर के समान प्रिय परमेश्वर का प्रेम और श्रद्धा से ध्यान करके स्तोता-जन परम तृप्ति तथा आनन्द पाते हैं ॥२॥

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